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मौसम ने ली करवट… छत्तीसगढ़ में नवंबर मध्य में अचानक बढ़ी ठंड, मैदानों में भी रात सर्द, उत्तर में शीतलहर, पहाड़ों में पारा 10 से नीचे…
छत्तीसगढ़ के उत्तरी हिस्से में शनिवार रात से अचानक ठंड बढ़ने लगी थी, जो पिछले 24 घंटे में शीतलहर में तब्दील हो गई है। प्रदेश में दिसंबर में शीतलहर के हालात बनते हैं, जो नवंबर में ही बन गए हैं। शनिवार रात कोरिया में तापमान 10 डिग्री से नीचे उतर गया। जशपुर और पंडरापाठ में भी रविवार की रात सर्द रही। उत्तरी छत्तीसगढ़ के जंगल-पहाड़ों और चिल्फी घाट में भी तापमान 10 डिग्री से नीचे चला गया है। इसका असर प्रदेश के मैदानी इलाकों में भी पड़ा है। बिलासपुर और रायपुर के मैदानी हिस्से में न्यूनतम तापमान सामान्य से 2-3 डिग्री तक कम हुआ है। मौसम विभाग के ने मंगलवार को भी रात के तापमान में हल्की गिरावट और प्रदेश में ठंड बढ़ने के आसार जताए हैं।
उत्तर छत्तीसगढ़ यानी सरगुजा और बिलासपुर संभाग का बड़ा हिस्सा उत्तर भारत से आने वाले ठंडी हवा की चपेट में है। इसलिए वहां ज्यादा ठंड पड़ रहा है। जंगल-पहाड़ों की वजह से बस्तर में नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा में भी ठीक-ठाक ठंड है। पिछले 24 घंटे में प्रदेश के विभिन्न इलाकाें में न्यूनतम तापमान ढाई डिग्री तक गिरा है।
ज्यादातर जगह अधिकतम तापमान भी सामान्य से 1 से 4 डिग्री तक कम है। पेंड्रारोड में न्यूनतम तापमान सामान्य से 4 डिग्री कम रहकर 10.6 डिग्री पर रुका। बिलासपुर में न्यूनतम तापमान 13 डिग्री रहा, जो सामान्य से 4 डिग्री ही कम है। अंबिकापुर में रात का पारा 10.6 डिग्री रिकार्ड किया गया, जो सामान्य से 3 डिग्री कम है। सरगुजा व बिलासपुर के कई इलाकों में न्यूनतम तापमान में 2 डिग्री तक गिरावट हुई है।
रायपुर में 15, आउटर में 12 डिग्री
राजधानी रायपुर के आउटर यानी नवा रायपुर और लाभांडी आदि में रविवार रात तापमान 12 डिग्री तक पहुंच गया। यह रायपुर शहर की तुलना में 3.5 डिग्री कम है। रायपुर में न्यूनतम तापमान 15.5 डिग्री रहा। हालांकि यह भी सामान्य से 3 डिग्री कम और शनिवार रात की तुलना में 2.2 डिग्री कम रहा। मौसम विज्ञानियों के अनुसार लाभांडी में ठंड के दिनाें में 5 डिग्री तक का अंतर देखने को मिलता है। इसलिए वहां शहर की तुलना में काफी अच्छी ठंड पड़ती है।
बस्तर में रात का तापमान कम
प्रदेश के उत्तरी भाग में सबसे ज्यादा ठंड पड़ती है। बस्तर में भी रातें सर्द होती है। प्रदेश के मध्य भाग में उत्तर व दक्षिण हिस्से की तुलना में कम ठंड पड़ती है। प्रदेश में नवंबर से जनवरी तक अच्छी ठंड पड़ती है। हालांकि मार्च तक हल्की ठंड का अहसास होता है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार ठंड पूरी तरह उत्तर भारत के मौसम पर निर्भर होता है। वहां से ठंडी व बर्फीली हवा आने से प्रदेश में अच्छी ठंड पड़ती है।
अब शीतलहर के दिन ज्यादा
नवंबर में ही शीतलहर चलने की शुरुआत से इस बार पूरे प्रदेश में अच्छी ठंड पड़ने की संभावना है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार इस बार शीतलहर के दिनों में काफी वृद्धि होगी। पिछले साल की तुलना में न्यूनतम तापमान भी गिरेगा। इससे ठंड ज्यादा पड़ेगी। मौसम विज्ञान केंद्र लालपुर के मौसम विज्ञानियों के अनुसार 15 नवंबर को भी उत्तर से ठंडी व शुष्क हवा आने की संभावना है।
वाराणसी : डेंगू लोगों को बना रहा अपना शिकार, बरतें सावधानी, लापरवाही पड़ेगी भारी
वाराणसी। जिले में डेंगू अपना कहर बरपा रहा है। अस्पतालों और रक्त जांच केंद्रों के सामने लंबी कतार लगी है। जिला प्रशासन ने डेंगू को लेकर अलर्ट जारी किया है। ऐसी स्थिति में डेंगू के लक्षण, बचाव, सावधानियां एवं उपचार के बारे में जानना अत्यधिक आवश्यक है।
डेंगू में प्लेटलेट कम होने से कहीं ज्यादा खरनाक है डिहाइड्रेशन
पंडित दीन दयाल उपाध्याय चिकित्सालय के फिजिशियन डॉ. श्रीतेश मिश्र बताते हैं कि डेंगू के मरीज के लिए डिहाइड्रेशन प्लेटलेट कम होने से कहीं ज्यादा खतरनाक होता है। शरीर में पानी की कमी यानी डिहाइड्रेशन से मरीज का ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट असामान्य होने लगता है। साथ ही वह अचेत हो सकता है। ऐसे में अगर सही समय पर शरीर को हाइड्रेट न किया जाए, तो डिहाइड्रेशन की यह स्थिति उसके लिए जानलेवा भी हो सकती है।
उन्होंने बताया कि डेंगू के मरीज को स्वस्थ व्यक्ति की तुलना कम न्यूनतम जमा में भूख, प्यास कम लगती है। इससे शरीर में कमजोरी आना सामान्य बात है। इसके अलावा तेज बुखार, डायरिया और उल्टी आदि से भी शरीर से पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स काफी मात्रा में बाहर निकल जाते हैं। इससे भी डिहाइड्रेशन होना शुरू हो जाता है।
इसलिए डेंगू के बुखार के दौरान शरीर को हाइड्रेट रखना बहुत जरूरी है। ऐसे में मरीज को हर दो घंटे पर एक गिलास ओआरएस घोल जरूर देना चाहिए साथ ही समय-समय पर लिक्विड वाली चीजें जैसे नींबू पानी, नारियल पानी, छांछ आदि पिलाते रहना चाहिए, जिससे उनके शरीर में सोडियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम आदि का संतुलन बना रहे।
30 हज़ार से कम प्लेटलेट खतरे की घंटी
डॉ. श्रीतेश मिश्र बताते हैं कि डेंगू होने के बाद प्लेटलेट्स कम होने पर आमतौर पर लोग घबरा जाते हैं। ऐसे में घबराए नहीं। नियमित जांच करवाते रहें। 30 हजार से कम होने पर प्लेटलेट्स चढ़ाने की आवश्यकता पड़ सकती है। उन्होंने बताया हैं कि आमतौर पर डेंगू के सभी मरीजों में प्लेटलेट्स थोड़े बहुत कम होते हैं। इसकी रिकवरी 8-10 दिन बाद स्वतः होने लगती है।
लक्षण दिखने पर डॉक्टर से संपर्क करें
तेज बुखार, सिर दर्द, मसल्स, हड्डियों और जोड़ों में दर्द, जी मिचलाना उल्टी होना, आंखों के पीछे दर्द, ग्रंथियों में सूजन, त्वचा पर लाल चकत्ते होना, अधिक थकान ,कम प्लेटलेट्स डेंगू के सामान्य लक्षण होते है। बुखार से पीड़ित मरीज को डेंगू है या नहीं इसकी पुष्टि के लिए एलाइजा जांच करानी चाहिए। इस जांच में यदि डेंगू होने की रिपोर्ट आती है तो किसी चिकित्सक से सलाह लेकर फौरन उपचार शुरू करा देना चाहिए। कुछ लोग चिकित्सक से सलाह लेने की बचाय घरेलू उपचार करने लगते है। यह मरीज के लिए घातक हो जाता है।
डेंगू को रोकने के लिए आवश्यक सावधानियां बरते
डेंगू एक संक्रामक रोग है जो एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। यह मरीज को छूने, उसके पास बैठने से नहीं होता। डेंगू से बचने के लिए मच्छरों से बचना बहुत जरूरी है। लिहाजा अपने आसपास मच्छरों को पनपने से रोकें। ऐसी जगह जहां मच्छर पनप सकते हैं वहां पानी न जमा होने दें , पुराने टायर, नारियल की खोल, प्लास्टिक बैग, गमले, कूलर में भी पानी जमा न होनें दें। इतना ही नहीं मच्छरों से बचने का हर सम्भव प्रयास करना चाहिए जैसे मच्छरदानी लगाना,पूरी बांह के कपड़े पहनना आदि का प्रयोग करें।
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UGC ने PHD डिग्री के लिए नियमों में किया बड़ा बदलाव, अब अधिक सीटों में होंगे दाखिले
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने रिसर्च PHD करवाने के अपने नियमों में बड़ा बदलाव किया है। इस संबंध में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी (PHD) डिग्री पर नए नियमों की घोषणा की है। कहा जा रहा है कि नए नियमों के आधार पर अब पीएचडी की अधिक सीटों में दाखिले होंगे। आगे चलकर ये बदलाव देश की बड़ी सफलता के रूप में जाने जाएंगे।
नए नियम तत्काल प्रभाव से लागू
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के विनियम, 2022″ के तहत नए नियम अब 2016 में अधिसूचित नियमों की जगह लेंगे। नए नियमों के तहत, यूजीसी ने इनकी एक श्रृंखला तैयार की है जिसमें पात्रता आवश्यकताओं, प्रवेश प्रक्रिया और मूल्यांकन पद्धतियों में महत्वपूर्ण संशोधनों के बारे में कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में डॉक्टरेट कार्यक्रमों के संचालन से संबंधित नियमों की विस्तार से जानकारी दी गई है। अधिसूचना के अनुसार ये सभी नियम तत्काल कम न्यूनतम जमा कम न्यूनतम जमा प्रभाव से लागू होते हैं।
PHD अध्ययन के लिए ये हैं नए नियम
– जिन छात्रों ने 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम पूरा कर लिया है, वे अब से डॉक्टरेट प्रोग्राम यानि PHD में सीधे प्रवेश पाने के पात्र होंगे।
– जहां ग्रेडिंग सिस्टम का पालन किया जाता है वहां स्केलिंग में उम्मीदवार के पास न्यूनतम 75% अंक होने चाहिए।
– यदि उम्मीदवार के चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम में 75% अंक नहीं हैं, तो उसे एक साल का मास्टर प्रोग्राम करना होगा और कम से कम 55% स्कोर करना होगा।
– नए नियम M.phil कार्यक्रम को पूरी तरह से बंद कर देंगे।
– विश्वविद्यालय और कॉलेज NET/JRF के माध्यम से छात्रों को योग्यता के साथ-साथ संस्थानों के स्तर पर प्रवेश परीक्षा देने के लिए स्वतंत्र बनाएंगे।
– यदि कोई व्यक्तिगत संस्थान छात्रों को प्रवेश देने के लिए अपनी प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है, तो उम्मीदवारों को चाहिए कि वो नेट या इसी तरह की परीक्षा न दे। “प्रवेश परीक्षा में 50% शोध पद्धति शामिल होगी” और 50 प्रतिशत विषय विशिष्ट”।
– जहां चयन व्यक्तिगत विश्वविद्यालयों कम न्यूनतम जमा द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षाओं द्वारा किया जाएगा, वहां 70% का वेटेज लिखित परीक्षा में प्रदर्शन के लिए और 30% साक्षात्कार के लिए दिया जाएगा।
– अब सहकर्मी-समीक्षित प्रकाशनों में शोध लेखों को प्रकाशित करने या प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी।
– कामकाजी पेशेवर अब अंशकालिक PHD कार्यक्रमों में नामांकन कर सकेंगे। इसके लिए उम्मीदवार जहां कार्यरत है वहां से किसी उपयुक्त अधिकारी द्वारा जारी आपत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त कर संस्थान में जमा कराएगा। NOC में स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए कि उम्मीदवार को अंशकालिक आधार पर पढ़ाई करने की अनुमति है।
– नई EWS (आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) श्रेणी के लिए प्रवेश आवश्यकताओं में 5% की रियायत दी गई है।
– वहीं UGC ने पीएचडी स्कॉलरों के लिए एक नई रिक्वायरमेंट और शुरू की है। चाहे वे किसी भी विषय के हों, शिक्षण/शिक्षण में प्रशिक्षण के लिए डॉक्टरेट की अवधि के दौरान अपने चुने हुए विषय से संबंधित शिक्षा/शिक्षाशास्त्र/लेखन आदि के लिए, अब स्कोलर PHD कर सकते हैं।
– अब सहकर्मी-समीक्षित प्रकाशनों में शोध लेखों को प्रकाशित करने या प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी।
अब अधिक सीटों में PHD के दाखिले होंगे
उल्लेखनीय है कि नए नियमों के तहत अब ज्वाइनिंग के बाद से ही प्रोफेसर छात्रों को PHD का अध्ययन करा सकेंगे। इसके अलावा अब प्रोफेसर को गाइड (Guide) बनने के लिए 5 साल का इंतजार भी नहीं करना होगा। पहले प्रोफेसर को गाइड बनने के लिए कई नियमों की सख्ती से भी गुजरना पड़ता था। लेकिन अब यूजीसी के नियमों में फेरबदल करने से सैंकड़ों छात्रों को बिना गाईड पीएचडी अनुसंधान से वंचित नहीं रहना पड़ेगा। बल्कि अब अधिक सीटों में पीएचडी के दाखिले हो सकेंगे।
अब देश के विकास में अपने शोध का दे पाएंगे योगदान
नियमों में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने राजपत्र (गैजेट नोटिफिकेशन) में पांच साल का टीचिंग/रिसर्च अनुभव की शर्त को भी हटा दिया है। इससे सारे कम न्यूनतम जमा देश के नवनियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर को देश के विकास में अपने शोध का योगदान देने का अवसर मिलेगा। इस फैसले से अब युवा शिक्षक और रिसर्चरों को काफी राहत मिलेगी। दरअसल, पहले के नियमों के आधार पर उन्हें रिसर्च से दूर रखा जाता था, और इससे सारे देश के नवनियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर प्रभावित होते थे।
तालाब निर्माण पर बंपर सब्सिडी, जानें किस राज्य में मिलेगी कितनी सब्सिडी
यूपी, बिहार और राजस्थान में सरकार किसानों को तालाब बनवाने पर दे रही है सब्सिडी
आधुनिक दौर में किसानों खेती-बाड़ी से काफी अच्छा लाभ अर्जित कर रहे है। आज के दौर में किसानों कि आर्थिक स्थिति काफी हद तक मजूबत मानी जा रही है। कारण स्पष्ट है कि आज के दौर में किसान खेती-बाड़ी के साथ पशुपालन कर साईड इनकम कर रहे है। पशुपालन में कम न्यूनतम जमा किसान गाय-भैंस पालन, बकरी पालन, मुर्गीपालन और मछली पालन जैसे आदि का पालन कर रहे है। केंद्र एवं राज्य सरकारें भी इनमें अपना पूरा सहयोग दे रही है। इन्हीं में से मछली पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ा वरदान सबित होता नजर कम न्यूनतम जमा आ रहा हैं। क्योंकि ग्रामीण लोगों को इस क्षेत्र से जोड़ने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर पर काफी मोटी सब्सिडी और कई तरह की सुविधाएं भी दे रही है। ऐसे में देश की कुछ राज्य सरकारें मछली पालन से किसानों को जोड़ने के लिए तालाब निर्माण पर भारी सब्सिडी भी देती दिख रही है। जिनमें यूपी, बिहार और राजस्थान राज्य सरकारें किसानों को तालाब बनवाने पर सब्सिडी दे रही है। इसके लिए ये राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर सब्सिडी योजना भी चला रही हैं। इन योजना के तहत राज्य सरकारें अपने-अपने राज्य में सिंचाई व्यवस्था को सरल बनाना चाहती है। साथ ही सरकार का कहना है कि इस योजना से किसानों को साफी फायदा होगा। सिंचाई के साथ- साथ किसान तालाब में मछली पालन भी कर सकते हैं। साथ ही इस योजना से भूजल स्तर में सुधार भी होगा। ऐसे में इन राज्यों के किसानों के लिए इस योजना का लाभ लेने के लिए शानदार मौका है। तो चलिए ट्रैक्टरगुरू के इस लेख के माध्यम से जानते है कि किन-किन राज्यों में सरकारें किसानों को तालाब निर्माण पर कितनी सब्सिडी उपलब्ध करावा रही है।
उत्तर प्रदेश सरकार तालाब बनवाने पर 50 प्रतिशत तक सब्सिडी
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अपने राज्य में किसानों को सिंचाई की समस्या से छुटकारा दिलाने जल और वर्षा जल को संरक्षित करने एवं राज्य में मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में “खेत तालाब योजना” लागू की। यूपी खेत तालाब योजना के तहत 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी राज्य सरकार द्वारा तालाब बनवाने के लिए दी जाएगी। यह राशि किसानों के खाते में तीन किस्तों में दी जाएगी। छोटे तालाब के निर्माण में किसानों के खाते में 52,500 रूपये की सब्सिडी आएगी, तो वहीं मध्यम आकर के तालाब निर्माण पर किसानों के खाते में 1,14,200 रूपये आ जाएंगे। खेत तालाब योजना में केन्द्र सरकार ने 5 वर्षों में 50000 करोड रुपए का बजट निर्धारित किया है।
तालाब का आकार
प्लास्टिक लाइनिंग पौंड - फैब्रिक एरिया 635 वर्ग मीटर (साइज 20 x 20 x 3 मीटर )
प्लास्टिक लाइनिंग पौण्ड - फैब्रिक एरिया 1426 वर्ग मीटर (साइज 32 x 32 x 3 मीटर)
प्लास्टिक लाइनिंग पौण्ड - फैब्रिक एरिया 2642 वर्ग मीटर (साइज 45 x 45 x 3 मीटर)
योजना लागू करने का मूल उद्देश्य
इस योजना को लागू करने का सरकार का मूल उद्देश्य बरसात का पानी जमा कर खेती में सिंचाई की मात्रा को बढ़ावा देना है। लगातार बारिश के समय जो पानी फसलों को बर्बाद कर देता है, उसे तालाब बना कर इकट्ठा करना। इससे किसानों की फसल सुरक्षित रहेगी और इकट्ठे पानी से किसानों को सिंचाई के लिए ट्यूबवेल का इस्तेमाल ज्यादा नहीं करना पड़ेगा। साथ ही किसान इस तालाब में मछली पालन, मोती की खेती और मखाना खेती जैसे बिजनेस शुरू कर डबल मुनाफा भी कमा सकते है। किसानों का चयन जिले में निर्धारित लक्ष्य के मुताबिक प्रथम आवत-प्रथम पावत के सिद्धांत पर ही किया जाएगा। योजना की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर आवेदन कर योजना का लाभ ले सकते हैं।
राजस्थान सरकार तालाब बनवाने पर 70 प्रतिशत तक सब्सिडी
राजस्थान सरकार राज्य में वर्षा जल का संचय करने एवं बंजर भूमि को खेतिहर भूमि बनाने और फसलों में सिंचाई करने करने के लिए फार्म पॉन्ड योजना की शुरूआत की है। सरकार ने इस योजना को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत लागू किया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य में गिरते भूजल स्तर के संकट को दूर करना एवं वर्षा जल का संचय कर फसल उत्पादन बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर जीविकोपार्जन, बंजर भूमि को खेतिहर भूमि बनाने व फसलों में सिंचाई करने में महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके अलावा राज्य में किसानों को मछली पालन, सीप पालन, झींगा पालन आदि बिजनेस को बढ़ावा देने है। ताकि राज्य में किसान इससे अतिरिक्त लाभ कमा सके।
योजना के अंतर्गत प्रत्येक किसान जो अपने खेतों के आसपास तालाब का निर्माण करवायेगे उन्हें राज्य सरकार की ओर से सब्सिडी प्रदान की जाएगी। इस योजना के माध्यम से 1200 घन मीटर वाले कच्चे फार्म पॉन्ड व प्लास्टिक लाइनिंग फार्म पॉन्ड निर्माण पर अधिकतम लघु व सीमांत किसानों को क्रमशः 73,500 व 1,05,000 या लागत का 70 प्रतिशत और अन्य किसानों को क्रमशः 63000 व 90000 या लागत का 60 प्रतिशत जो भी कम हो अनुदान दिया जाता है। अगर फार्म पॉन्ड का आकार 1200 घन मीटर से कम व न्यूनतम 400 घन मीटर होने पर प्रोरेटा बेसिस पर अनुदान दिया जाता है। 400 घन मीटर से कम आकर वाले फार्म पॉन्ड पर अनुदान देय नही है। अनुदान के लिए किसान नवीनतम जमाबंदी (6 माह तक) ई हस्ताक्षरित या पटवारी द्वारा जारी, प्रमाणित नक्शा ट्रेश नवीनतम ( 6 माह तक) ई हस्ताक्षरित या पटवारी द्वारा जारी एवं कई अन्य जरूरी दस्तावेज साथ लेकर अपने नजदीक ही ई-मित्र केन्द्र पर जाकर राज किसान साथी पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करें। अधिक जानकारी किसान नजदीकी किसान सेवा केंद्र से प्राप्त कर सकते हैं।
बिहार सरकार तालाब निर्माण की कुल इकाई लागत पर 70 प्रतिशत तक सब्सिडी
बिहार सरकार राज्य में कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाले ग्रामीण व्यवसायों में मछली पालन पर फोकस कर रही हैं। इसके लिए बिहार सरकार भी राज्य में जल कृषि यानी मछली पालन को बढ़ाना देने के लिये तालाब निर्माण की कुल इकाई लागत पर 70 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही है। बिहार सरकार ये सुविधा प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत किसानों को दे रही है। राज्य में अब किसान खेतों के बीच तालाब बनवाकर खेती के साथ-साथ मछली पालन कर रहे हैं, जिससे आमदनी तो बढ़ी ही है, साथ ही गांव में रोजगार के अवसर भी बढ़ते जा रहे हैं। बिहार पशु और मत्स्य संसाधन विभाग द्वारा सात निश्चय-2 के तहत मुख्यमंत्री समेकित चौर विकास योजना- 2022-23 के लिए किसानों को एक हेक्टेयर में 2 तालाब निर्माण के लिये कुल इकाई लागत पर 8 लाख 80 हजार रुपये, 4 तालाब निर्माण के लिए अधिकतम इकाई लागत पर 7 लाख 32 हजार रुपए एवं 1 तालाब के निर्माण के साथ-साथ भूमि विकास के लिए 9 लाख 69 हाजर रुपये का अनुदान दिया जा रहा है। इसमें एससी-एसटी और पिछड़ा वर्ग के लिये 70 प्रतिशत, सामान्य वर्ग के किसानों को 50 प्रतिशत और व्यक्तिगत उद्यमी के लिए 30 प्रतिशत तक अनुदान का प्रावधान किया गया है।
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