डॉलर को क्या प्रभावित करता है

पिछले कुछ हफ़्तों से लगातार बढ़ रही तेल की कीमतों की वजह से पहले ही मंहगाई बढ़ने की आशंका जताई जा रही थी. अब चूंकि भारत को तेल आयात करना और मंहगा पड़ेगा इसलिए बड़ी चिंता इसी बात को लेकर है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें और ऊपर चली जाएँगी जिसका सीधा असर आवश्यक चीज़ों के परिवहन की लागत पर पड़ेगा और मंहगाई और बढ़ेगी.
डॉलर के सामने गिरता रुपया, आम लोगों की जेब पर क्या होगा असर
पिछले कुछ दिनों में इस बात पर भी चिंता जताई जा रही है कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी लगातार कम होता जा रहा और कई हफ़्तों से चल रही गिरावट की वजह से ये 600 अरब डॉलर से नीचे पहुंच चुका है.
सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, "मोदी जी जब रुपया गिरता था तो आप मनमोहन जी की आलोचना करते थे. अब रुपया अपने अब तक के सबसे कम मूल्य पर डॉलर को क्या प्रभावित करता है है. लेकिन मैं आंख मूंदकर आपकी आलोचना नहीं करूंगा. गिरता हुआ रुपया निर्यात के लिए अच्छा है बशर्ते हम निर्यातकों को पूंजी के साथ समर्थन दें और रोज़गार सृजित करने में मदद करें. हमारी अर्थव्यवस्था के प्रबंधन पर ध्यान दें, न कि मीडिया की सुर्खियों पर."
कैसे गिरा रूपया?
पिछले हफ्ते अमेरिकी फेडरल रिजर्व की 50-आधार-बिंदु दर वृद्धि और आने वाले महीनों में और अधिक दरों में बढ़ोतरी के संकेत के बाद वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर में उछाल को रुपये में गिरावट का एक बड़ा कारण माना जा रहा है.
साथ ही विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार से अपने निवेशों को खींच लेना भी रूपए के गिरने के कई कारणों में से एक माना जा रहा है.
ये भी कहा जा रहा है कि दुनिया के प्रमुख देशों में मौद्रिक नीति के सख्त होना, आर्थिक मंदी और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बना भू-राजनीतिक तनाव भी निवेशकों में चिंता बढ़ा रहा है और ये रुपये में आई गिरावट का एक कारण हो सकता है.
प्रोफेसर मुनीश कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय में वित्त अध्ययन विभाग के प्रमुख हैं.
वे कहते हैं, "जैसे ही अंतरराष्ट्रीय वित्त बाजारों में कोई दहशत होती है, लोग डॉलर की तरफ भागते हैं और डॉलर की मांग बढ़ती है. उसका भी एक असर होता है. कुछ विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारत से विनिवेश किया जिस वजह से स्टॉक मार्केट गिरा. और इस वजह से काफी पैसा बाहर चला गया."
क्या हैं मायने?
गिरते रुपये का सबसे बड़ा असर यह है कि आयात अधिक महंगा हो जाता है और निर्यात सस्ता हो जाता है. इसकी वजह ये है कि आयात की समान मात्रा का भुगतान करने में अधिक रुपये लगते हैं और निर्यात की समान मात्रा का भुगतान करने के लिए खरीददार को कम डॉलर लगते हैं.
तो रुपये में गिरावट का अधिक असर उन आयातकों पर पड़ता है जो रुपये की कीमत प्रति डॉलर बढ़ जाने से बुरी तरह प्रभावित होते हैं. हालांकि रुपये का गिरना निर्यातकों के लिए सकारात्मक साबित होता है क्योंकि उन्हें डॉलर के बदले अधिक रुपया मिलता है.
रुपया कमजोर हो रहा है या डॉलर मजबूत
अभी कुछ समय पहले रुपये के मूल्य को लेकर भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की एक टिप्पणी ने खूब सुर्खियां बटोरी थी। उन्होंने कहा था कि, 'वे रुपये में गिरावट नहीं, बल्कि इसे डॉलर की मजबूती के रूप में देखती हैं, डॉलर लगातार मजबूत हो रहा है’। तो क्या डॉलर ही हमारे रुपये की कीमत तय करता है? हां, कुछ हद तक। लेकिन जैसा कि हमने पहले कहा था, इसके पीछे एक साइंस है। दरअसल, भारतीय रुपये की कीमत तय करने के पीछे कई फैक्टर काम करते हैं।
महत्वपूर्ण होता है ब्याज दर
जब आपको पता चले कि किसी इंस्ट्रूमेंट की ब्याज दर हाल ही में बढ़ी है, तो आप क्या करेंगे? जाहिर सी बात है आप अपना सरप्लस मनी (surplus money) को एक असेट क्लास से निकाल लेंगे। और, अपने धन को वहां जमा करेंगे जहां अधिकतम सुनिश्चित रिटर्न मिलेगा। इसी तरह का कॉन्सेप्ट यहां है। यूएस फेड लगातार ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहा है, जिससे अमेरिकी डॉलर एक आकर्षक निवेश विकल्प बन गया है। दुनिया भर से बड़े निवेशक दूसरे देशों से पैसा निकाल रहे हैं और अमेरिका में निवेश कर रहे हैं। जिससे डॉलर पहले डॉलर को क्या प्रभावित करता है से कहीं ज्यादा मजबूत हो रहा है।
आरबीई क्यों बढ़ा रहा है ब्याज दर
अभी आपने जाना कि अमेरिकी फेड रिजर्व (US Fed Reserve) लगातार ब्याज दर में बढ़ोतरी कर रहा है। इसलिए दुनिया भर से पैसा वहां जमा हो रहा है। यदि किसी अन्य देश को उससे मुकाबला करना है तो उसे भी ब्याज दर में बढ़ोतरी करनी होगी। इसलिए RBI को भी दरों में बढ़ोतरी करनी पड़ रही है। ताकि निवेशक हमारे देश से धन न निकालें।
डॉलर की रिकवरी से तेल प्रभावित
गुरुवार को तेल की कीमतें धीमी हो रही थीं, फेड की आगे की ब्याज दर में बढ़ोतरी से कम हो गया, जो डॉलर का समर्थन कर रहा है और आशंका बढ़ रही है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी में गिर रही है, कच्चे तेल की मांग को कम कर रही है।
लगभग 10:40 बजे GMT (पेरिस में 11:40 बजे), जनवरी 2023 में डिलीवरी के लिए उत्तरी सागर से ब्रेंट का एक बैरल 1.12% घटकर 95.08 डॉलर हो गया।
अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) का दिसंबर डिलीवरी का बैरल 1.40% गिरकर 88.74 डॉलर पर आ गया।
अमेरिकी सेंट्रल बैंक (फेड) से अपेक्षा से अधिक आक्रामक मुद्रा, जिसने मुद्रास्फीति से लड़ने की अपनी इच्छा दोहराई और बुधवार को अपनी प्रमुख दर 0.75 प्रतिशत अंक बढ़ा दी, ने अमेरिकी डॉलर का समर्थन किया।
मुद्रास्फीति का बुरा दौर खत्म
पिछले कुछ दिनों से जींसों और कच्चे तेल की कीमतों में सुधार हुआ है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के खाद्य सामग्री कीमत सूचकांक द्वारा मापी गई वैश्विक कीमतों में जून में लगातार तीसरी बार गिरावट आई. खासकर खाद्य तेल के उप-सूचकांक में मार्च और जून के बीच 15 फीसदी की गिरावट आई.
औद्योगिक धातुओं की कीमतें मार्च में शिखर छूने के बाद अब गिरी हैं. कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें भी मंडी की आशंकाओं की वजह से जुलाई के शुरू से नरम हुई हैं. आयातों की कीमतों में लगातार नरमी भारत के ‘सीएडी’ के लिए अच्छी खबर है. ‘सीएडी’ जिस हद तक काबू में रहेगा मुद्रा की कीमत में ज्यादा गिरावट नहीं होगी.
रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप
अल्पावधि के लिए रुपये की दिशा अमेरिकी फेडरल रिजर्व की अगली बैठक में दरों में वृद्धि के अनुपात से तय होगी. भारतीय रिजर्व बैंक रुपये की गिरावट को रोकने के लिए हस्तक्षेप करता रहा है. इस मकसद से उसने अपने भंडार में से करीब 50 अरब डॉलर बेच डाले हैं. लेकिन डॉलर जब मजबूत हो रहा है, उस हालात में रुपये का बचाव करना कठिन होगा. विदेशी कर्ज के बारे में रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 43 फीसदी विदेशी कर्ज की अवधि इस साल पूरी हो जाएगी. इसके डॉलर को क्या प्रभावित करता है कारण ज्यादा डॉलर की मांग होगी और यह जमा कोश के प्रबंधन के लिहाज से रिजर्व बैंक के लिए एक चुनौती होगी.
डॉलर की आवक बढ़ाने के लिए पूंजीगत नियंत्रणों का रिजर्व बैंक का ताजा फैसला एक सकारात्मक कदम है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार रुपये में करने की इजाजत देने का ताजा फैसला अल्पकालिक तौर पर ज्यादा असर नहीं डालेगा. लेकिन मध्य या दीर्घ अवधि के लिए यह डॉलर की जगह रुपये की मांग की ओर ले जाएगा.
हाइलाइट्स
एक करेंसी के मुकाबले दूसरी करेंसी की वैल्यू एक्सचेंज रेट द्वारा तय होती है.
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये का एक्सचेंज रेट फिलहाल 82.36 है.
भारत विभिन्न विदेशी मुद्राओं के लिए फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट फॉलो करता है.
नई दिल्ली. अमेरिकी डॉलर ($) के मुकाबले भारतीय रुपया (₹) आए दिन नया न्यूनतम स्तर छू रहा है. फिलहाल यह 1 डॉलर के मुकाबले 82.367 रुपये पर है. शुक्रवार को यह 0.24 फीसदी की बढ़त के साथ बंद हुआ था. कोई करेंसी किसी दूसरे देश की करेंसी के मुकाबले कितनी मजबूत या कमजोर है यह एक्सचेंज रेट से पता चलता है. भारतीय रुपये और डॉलर की तुलना करें तो अगर आप 82.36 रुपये लेकर डॉलर में कन्वर्ट करने जाते हैं तो आपको केवल 1 डॉलर मिलेगा. यही एक्सचेंज रेट है.
अब सवाल उठता है कि एक्सचेंज रेट तय कौन करता है. सबसे पहला ख्याल दिमाग में भारतीय रिजर्व बैंक का आता है, लेकिन ऐसा नहीं है. दरअसल, भारतीय रुपये का एक्सचेंज रेट कोई एक संस्थान या संगठन नहीं करता है. केवल डॉलर ही नहीं अन्य विदेशी मुद्राओं के मुकाबले भी भारतीय रुपये का एक्सचेंज रेट कई बाजार आधारित फैक्टर्स द्वारा तय होता है. गौरतलब है कि 1990 से पहले यह काम आरबीआई ही करता था. तब भारत एक फिक्स्ड एक्सचेंज रेट को फॉलो करता था. उस समय घरेलू करेंसी अमेरिकी डॉलर और अन्य मुद्राओं के एक बास्केट के साथ पैग्ड थी. पैग होने का मतलब है कि दूसरी करेंसी के मुकाबले अपनी करेंसी को एक तय सीमा बांध दिया जाएगा और उसमें गिरावट या तेजी उसी दायरे में रहेगी. इस सिस्टम में आरबीआई या केंद्र सरकार अपनी करेंसी का एक्सचेंज रेट तय करते हैं.