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डॉलर ही क्यों?

डॉलर ही क्यों?
डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

डॉलर के मुकाबले रुपये में भारी गिरावट

मोदी सरकार के ये 3 फैसले कर गए काम, ‘डॉलर क्राइसिस’ में भी दम दिखा रही इंडियन इकोनॉमी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2070 तक भारत को नेट जीरो कार्बन इकोनॉमी बनाने का संकल्प लेने के बावजूद देश के कोयले का उत्पादन बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं और आयात पर निर्भरता घटाई है

दुनिया में जारी उथलपुथल और अनिश्चितता के इस दौर में भारत सरकार सही दांव चलती नजर आ रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के महामारी के बाद की रिकवरी के साथ, दुनिया अब गुड्स और एनर्जी की खरीद के लिए अमेरिकी डॉलर की डिमांड बढ़ने से लिक्विडिटी क्राइसिस (liquidity crisis) और मनी की सप्लाई में कमी के हालात की ओर बढ़ रही है।

US Federal Reserve के ग्लोबल मॉनेटरी सिस्टम से लिक्विडिटी सोखने से जुड़े फैसलों और दूसरी इकोनॉमीज में इसकी कमी से क्रिप्टो से करेंसीज, स्टॉक्स से बॉन्ड्स तक सभी एसेट्स में गिरावट की आंधी चल रही है। अनिश्चितता के दौर में अक्सर इनवेस्टमेंट मैनेजर्स को सहारा देने वाला अमेरिकी डॉलर इस साल 20 फीसदी मजबूत हो चुका है।

जनवरी-फरवरी में इतना गिरा रुपया

जनवरी के अंत में यानी 31 जनवरी को रुपया गिरकर 75.043 के स्तर पर आ गया. 1 फरवरी को रुपया थोड़ा मजबूत होकर 74.5622 रुपये के स्तर पर आ गया. 15 फरवरी को यह 75.6813 रुपये और 28 फरवरी को 75.2087 रुपये के स्तर पर रहा.

Rupee At All Time Low: रुपया 19 पैसे टूटकर 79.45 प्रति डॉलर के सर्वकालिक निचले स्तर पर

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मार्च में रुपये की हालत और हुई पतली

मार्च में रुपये की हालत और पतली हो गयी. हालांकि, अंत में इसकी स्थिति में कुछ सुधार आया. 1 डॉलर ही क्यों? मार्च को रुपये का भाव प्रति डॉलर 75.3768 था, जो 8 मार्च को गिरकर 77.0606 रुपये हो गया. हालांकि, 31 मार्च को यह थोड़ा मजबूत होकर 75.8434 रुपये पर बंद हुआ.

अप्रैल के महीने में भी रुपये में गिरावट दर्ज की गयी. 1 अप्रैल को एक डॉलर की कीमत 75.9206 रुपये थी, जो 28 अप्रैल को गिरकर 76.7621 रुपये तक गिर गया. 1 मई को रुपया थोड़ा मजबूत हुआ और 76.5257 के स्तर पर रहा. 21 मई को रुपया अपने न्यूनतम स्तर 77.8383 रुपये पर आ गया.

80 रुपये के पार पहुंच गयी एक डॉलर की कीमत

जून में देखें, तो रुपया थोड़ा मजबूत होकर खुला. 1 जून को 1 डॉलर की कीमत 77.593 रुपये रही. 13 जून को यह 78.1519 रुपये तक पहुंच गया, जबकि 30 जून को यह 79.0743 रुपये के स्तर पर रहा. 1 जुलाई को रुपया 78.9482 के स्तर पर खुला, जो 19 जुलाई को 80 रुपये डॉलर ही क्यों? के पार कर गया.

यह पहला मौका था, जब अमेरिकी मुद्रा के मजबूत बने रहने और कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के बीच रुपया शुरुआती कारोबार में डॉलर के मुकाबले अब तक के अपने निम्नतम स्तर 80.05 रुपया प्रति डॉलर पर आ गया. अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 80 के भाव पर खुला, लेकिन थोड़ी ही देर में 80.05 के स्तर पर आ गया.

Forex reserves: भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 2 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा, लगातार 9वें हफ्ते आई गिरावट

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) लगातार नौवें सप्ताह गिरकर 532.66 अरब डॉलर पर आ गया, जो पिछले हफ्ते से करीब 4.854 अरब डॉलर कम है। यह पिछले 2 सालों का (24 जुलाई 2020 के बाद का) इसका सबसे निचला स्तर है। आंकड़े 30 सितंबर को समाप्त हुए हफ्ते के हैं।

RBI की तरफ से शुक्रवार 7 अक्टूबर को जारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली। 23 सिंतबर को डॉलर ही क्यों? समाप्त हुए इसके पिछले हफ्ते में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 537.52 अरब डॉलर रहा था।

विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के पीछे एक मुख्य वजह फॉरेन करेंसी एसेट्स (FCA) में आना रहा, जो 30 सितंबर को समाप्त हुए हफ्ते में 472.81 अरब डॉलर रहा। इसके पिछले हफ्ते में FCA 477.21 अरब डॉलर रहा था। इसके अलावा गोल्ड एसेट्स 30 सितंबर को समाप्त हुए हफ्ते में घटकर 37.61 अरब डॉलर रहा, जो इसके पिछले हफ्ते 37.89 अरब डॉलर रहा।

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डॉलर के मुकाबले रुपये की वैल्यू में उतार-चढ़ाव को रोकने और भारतीय पैसे में बेतहाशा उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए RBI ने हाल के हफ्तों में अमेरिकी डॉलर बेचे हैं, इससे भी विदेशी मुद्रा भंडार घटा है।

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया शुक्रवार 7 डॉलर ही क्यों? अक्टूबर को गिरकर 82.43 रुपये पर पहुंच गया। साल 2022 की शुरुआत से अब तक भारतीय रुपया 9 फीसदी घट चुका है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और ग्लोबल सेंट्रल बैंकों की तरफ से महंगाई रोकने के लिए ब्याज दरों में आक्रामक बढ़ोतरी करने की वजह से इस साल रुपये में कमजोरी आई है।

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान डॉलर ही क्यों? तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

RBI क्यों कर रहा डॉलर की रिकॉर्डतोड़ बिक्री, महंगाई से इसका क्या है कनेक्शन?

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भारत में लगातार गिरते रुपये (Rupee Falling) और मजबूत होते डॉलर (Dollar) के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने मंगलवार, 17 मई को बताया कि रुपये को मजबूत बनाने के लिए मार्च में 20.1 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा बाजार में बेचे गए हैं. यानि 20 अरब डॉलर.

लेकिन डॉलर बेचने से रुपये को कैसे मजबूती मिलती है, ये समझते हैं.

पहले समझिए रुपया क्यों कमजोर हो रहा है?

लगातार गिरते रुपये का मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध है जिसके अभी और लंबा चलने की आशंका है. इसके अलावा अमेरिका की फेडरल बैंक जो ब्याज दरें बढ़ा रहा है, उससे ग्लोबल ग्रोथ में सुस्ती आने का डर भी एक वजह बना है. क्रूड आयल की कीमतों में भी उछाल है ही.

इसके अलावा विदेशी निवेशक भारत के बाजार से पैसा निकाल रहे हैं, जिसकी वजह से भी डॉलर की डीमांड बढ़ रही है और परिणामस्वरूप रुपया कमजोर हो रहा है.

डॉलर बेचने से डॉलर ही क्यों? कैसे मजबूत हो सकता है रुपया?

केंद्रीय बैंक के पास बैंकिंग सिस्टम पर ध्यान रखने के अलावा महंगाई को नियंत्रण करने या बाजार में लिक्विडिटी मैनेज (करंसी सप्लाय) करने की जिम्मेदारी भी होती है. लिक्विडिटी मैनेजमेंट का मतलब ये है कि बाजार में कितनी नगदी होगी. रुपये को डॉलर के मुकाबले मजबूती देने के लिए आरबीआई स्पॉट मार्केट में डॉलर्स की बिक्री करती है. इस प्रक्रिया को डॉलर-रुपी स्वाप (Dollar-Rupee Swap) कहते हैं. नाम से ही मतलब साफ समझ आ रहा है. बाजार से भारी मात्रा में रुपया वापस लेकर डॉलर की सप्लाय करना.

आरबीआई इस प्रक्रिया के तहत डॉलर को भारतीय स्पॉट मार्केट में बेचता है. स्पॉट मार्केट वो व्यवस्था है जहां फाइनेंशियल इंस्ट्रुमेंट, करंसी को ट्रेड किया जाता है. स्पॉट मार्केट में जो भी ट्रेड होता है उसकी डिलिवरी भी जल्द से जल्द डॉलर ही क्यों? की जाती है. और यहां जिस दिन ट्रेड होता है उस दिन के प्राइस पर सेटलमेंट किया जाता है. RBI ये कदम 2008 में भी उठा चुका है.

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