एक शुरुआती गाइड

वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें?

वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें?

विवादों का आदिपुरुष

हमारे पास लगातार विवाद करने के लिए विषयों की कमी नहीं है. हम जिन मुद्दों पर विवाद करना चाहिए उन्हें ताक पर रखकर उन मुद्दों पर विवाद करने में सबसे आगे रहते हैं जिनका हमारी रोजी-रोटी से कम भावनाओं से ज्यादा रिश्ता होता है. रिश्ता न भी हो तो रिश्ता कायम कर दिया जाता है. अब हम यानि हमारा देश फिल्म निर्देशक ओम राउत और प्रभाष, सैफ अली खान व कृति सैनन की मुख्य भूमिका वाली आदिपुरुष का टीजर देखते ही विवादों में उलझ गया है.फिल्म आएगी तब न जाने क्या होगा ?
देश को [जो शायद केवल हिन्दुओं का है ] फिल्म में रावण और हनुमान के लुक पर ही नहीं बल्कि उनके किरदारों की प्रस्तुति पर भी ऐतराज है . फिल्म में भगवान राम का किरदार ‘बाहुबली’ के अभिनेता प्रभास निभा रहे हैं जबकि दसानन , लंकेश (रावण) की भूमिका में सैफ वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? अली खान हैं। इसमें लंकेश की दाढ़ी है, उसकी उग्र आंखें हैं, जिससे वह बर्बरता का अवतार लगता है। इस वजह से कई लोगों ने फिल्म निर्माताओं को रावण का ‘इस्लामीकरण’ करने वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? के लिए आड़े हाथों लिया।
फिल्म में किस किरदार का लुक कैसा हो ये जनता की आपत्ति का विषय नहीं है. इस पर आपत्ति देश की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा,उसके सहयोगी संगठनों की है .जैसे रामलीला के सभी पात्रों से इन्हीं का सीधा रिश्ता हो और ये ही लोग इन पात्रों के रिश्तेदार हों ? आदिपुरुष के पात्रों की वेश-भूषा पर आपत्ति करना और न करना निजी मामला हो सकता है .लेकिन इसमें मंत्री-संत्री कूदते हैं तो साफ़ हो जाता है कि विरोध के पीछे सियासत है और जनता को विवादों में उलझाए रखने की कोशिश भी .आपत्ति भी कैसी किफिल्म में हनुमान के किरदार की दाढ़ी है और उनकी मूंछे नहीं हैं तथा उन्होंने चमड़े से बनी पोशाक पहनी है। जैसे इन किरदारों कि पोशाकें हमारे राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षीर रखीं हों .
इस नए विवाद को गति देने के लिए हैशटैग ‘बॉयकॉट (बहिष्कार) आदिपुरुष’ और ‘बैन (रोक) आदिपुरुष’ के सोशल मीडिया परगति पकड़ने के साथ ही, मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र ने चेतावनी दी कि अगर हिंदू धर्म के देवी-देवताओं को गलत तरीके से दिखाने वाले दृश्यों को नहीं हटाया गया तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
मध्य प्रदेश सरकार के प्रवक्ता मिश्रा ने भोपाल में पत्रकारों से कहा, “ मैंने 'आदिपुरुष' का टीजर देखा है। इसमें आपत्तिजनक दृश्य हैं।”
आदिपुरुष के राम,रावण और हनुमान से मध्यप्रदेश के ही नहीं उत्तर प्रदेश के मंत्री भी नाखुश हैं .उन्होंने भी फिल्म का विरोध किया है. अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणी को फिल्म में सैफ अली खान का लुक पसंद नहीं आया था। उन्होंने इसका विरोध जताया था।रामानंद सागर की 'रामायण' फेम सीता उर्फ दीपिका चिखलिया को महसूस हुआ कि रामायण की कहानी जो की सच्चाई और सात्विकता की कहानी है। अब उसमें वीएफएक्स को जोड़ना बिलकुल सही नहीं लगा।
सिनेमा अभिव्यक्ति का ही नहीं मनोरंजन का भी माध्यम है.इसे किसी ख़ास विचारधारा से नियमित या नियंत्रित नहीं किया जा सकता और शायद किया भी नहीं गया होगा,क्योंकि जब फिल्म का टीजर बना है तो फिल्म भी बनी है और उसे सेंसर बोर्ड ने अनुमति दी होगी ,तो फिल्म देखी भी होगी. टीजर तो देखा ही होगा .ऐसे में फिल्म पर आपत्ति कर एक ख़ास तरिके का माहौल बनाना देश में नफरत फ़ैलाने वाले अभियान को गति देने की कोशिश दिखाई देती है.
धारावाहिकों और सिनेमा में भगवान कृष्ण की भूमिका निभाने वाले नीतीश भारद्वाज एक कलाकार की दृष्टि रखते हैं. वे कहते हैं कि - आदिपुरुष फिल्म का मैंने टीजर देखा है। देखकर अच्छा लगा कि कैसे नई तकनीकि का इस्तेमाल कर फिल्ममेकर्स कहानी को वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? एक अलग और नया विजन दे रहे हैं। टीजर मुझे पसंद आया। उम्मीद करता हूं कि दर्शकों को भी ये अच्छा लगेगा।मेरे ख्याल से किसी भी माध्यम की पसंद या न पसंद किसी राजनीतिक दल या किसी ख़ास विचारधारा के संगठन को तय करने की कोशिश नहीं करना चाहिए. देश वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? के हिन्दू समाज ने ऐसा करने के लिए उन्हें कभी अधिकृत नहीं किया है .
करीब 500 करोड़ रूपये की लागत से बनी ये फिल्म क्या इन कटटरवादी संगठनों और सरकारों के विरोध की वजह से प्रदर्शित नहीं की जा सकेगी ? या इसमें तब्दीली करना पड़ेगी ? ये ऐसे सवाल है न जो हर उस फिल्म के साथ सामने आते हैं जो हमारे सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों को पसंद नहीं हैं .इससे पहले भी आमिर खान की फिल्म 'लाल सिंह चढ्डा ' के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की गयी थी .सिनेमा पर सियासत का वार अप्रत्याशित है .इसका मुकाबला किया जाना चाहिए अन्यथा अफगानिस्तान के तालिबान और हिन्दुस्तान के तालिबानों में फर्क क्या रह जायेगा ?
मंत्री जी हों या तिलकधारी कोई दूसरे नेता इस बात के लिए स्वतंत्र हैं कि वे आदिपुरुष को न देखें .लेकिन उन्हें ये आजादी न संविधान ने दी है और न समाज ने कि वे किसी फिल्म के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दें .मंत्रियों को जो जिम्मेदारी दी गयी है उसका निर्वाह तो उनसे होता नहीं है किन्तु वे धर्मध्वजाएं उठाकर सबसे आगे खड़े दिखाई देते हैं .मध्यप्रदेश में तो फिल्म निर्माताओं के साथ अतीत में जो व्यवहार सरकार और उसके समर्थकों ने किया उसे कभी भुलाया नहीं जा सकेगा .
फिल्म निर्माताओं की जिम्मेदारी है कि वे जनता की भावनाओं का ख्याल रखें.लेकिन उन्हें ये छूट भी है कि वे अपनी वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? कल्पनाओं में रंग भी भर सकें .रावण,राम और हनुमान को हम में से किसी ने नहीं देखा ,इसलिए उनका लुक और वेश भूषा कैसी थी इसका दावा हम में से कोई नहीं कर सकता .जब हम अपनी धारणा से किसी छवि को स्वीकार कर सकते हैं तो हमें दूसरे प्रयोगों के लिए भी तैयार रहना चाहिए .कल्पना कीजिये कि यदि इसी फिल्म का प्रमोशन पंत प्रधान ने ' दी कश्मीर फ़ाइल ' की तरह कर दिया होता तो क्या एक भी मंत्री ,संत्री अपना मुंह खोल पाता ?

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अंधेरे में डिस्को

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अंधेरे में डिस्को

‘अंधेरे में’ की केंद्रीय समस्या बिजली है। अंधेरे में कविता इसलिए महान नहीं है कि मुक्तिबोध ‘अस्मिता’ खोज रहे हैं। इसलिए महान है कि वह बिजली के न होने की पहली ‘पब्लिक कंप्लेंट’ है। यह पूरे भारत की शिकायत वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? है। आज भी भारत का अधिकांश अंधेरे में रहता है। मेरा दावा है कि मुक्तिबोध को किसी अस्मिता की नहीं, एक ठो ‘केजरीवाल’ की तलाश थी। मुक्तिबोध की बदकिस्मती कि केजरीवाल ‘लेट’ आए। अंधेरे में पढ़ना असंभव कर्म है। आप अगर अंधेरे में हैं, तो पढ़ेंगे कैसे? अंधेरे में या तो उलूक महोदय पढ़ते हैं या अंधेरे में देख सकने वाली दूरबीन पढ़ सकती है। हम भी उल्लू होते, तो अंधेरे में पढ़ सकते थे। हमारी कमी कुछ अन्य लक्ष्मी-वाहन पूरी कर रहे हैं। वे ‘अंधेरे में डिस्को’ कर रहे हैं।

उलूक ‘अंधेरे में’ ‘स्पेशलिस्ट’ हैं। ‘कठिन काव्य के प्रेत’ (प्रथम) महाकवि केशवदास ने एक प्रसंग विशेष में उलूक-वर्णन किया है, जिससे ‘कठिन काव्य के प्रेत’ (द्वितीय) के उलूक पाठ पर कुछ प्रकाश पड़ सकता है। वे ‘उलूक पाठ’ की विशेषता बताते हुए रामचंद्रिका में कहते हैं: ‘वासर की संपति, उलूक ज्यों न चितवत।’ यानी दिन के समय भौतिक संपदा को जिस तरह उलूक नहीं देख पाता, उसी तरह..।

मुक्तिबोध को भी ‘अंधेरे में’ एक उल्लू दिखता है। वे उसे ‘घुग्घू’ कहते हैं। घुग्घू को उल्लू का छोटा भाई कहा जाता है। दोनों ही अंधेरे में दर्शन करने के प्रवीण हैं। अंधेरे में सबको डर लगता है। कमजोर दिल वाले को तो अंधेरे में भूत दिखाई देते हैं। समझदार आदमी अंधेरे वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? में जाता है, तो मोमबत्ती लेकर जाता है या लालटेन लेकर या मशाल लेकर या टॉर्च लेकर जाता है। अंधेरे में के 50 बरस मनाने वाले निशाचरी वृत्ति से संपन्न मित्रों के समक्ष मेरा एक उल्लू-प्रश्न यह है कि वे पहले यह स्पष्ट करें कि समाज में दीपक, मोमबत्ती, लालटेन, मशाल या टॉर्च के होते हुए भी मुक्तिबोध या कि उनका नायक बिना इनके ‘अंधेरे वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? में’ क्यों जाता है? अपने सवाल का हमारा जबाव यह है कि मुक्तिबोध दीपक लेकर जा ही नहीं सकते थे, क्योंकि वह सीपीआई टाइप थे। दीपक लेकर जाते, तो उनकी पार्टी उन्हें निकालकर बाहर कर देती,क्योंकि उन दिनों दीपक भारतीय जनसंघ का चुनाव चिन्ह था। मोमबत्ती न जलाने का एक कारण यह है कि मुक्तिबोध ‘एनजीओ’ नहीं बन सके।

आज के एनजीओ होते, तो मोमबत्ती जला लेते। टॉर्च लेकर इसलिए नहीं गए, क्योंकि टॉर्च वाली कंपनी ‘यूनियन कार्बाइड’ थी, एकदम साम्राज्यवादी। रही मशाल, तो मुक्तिबोध उसे भी नहीं जलाते। कविता में किसी और से जलवाते हैं। वह कमबख्त कुछ देर जलाकर बुझा देता है। अंधेरे में बिजली संकट का एक अनूठा महाकाव्य है। वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? वह वी एफ एक्स अलर्ट के साथ व्यापार कैसे शुरू करें? इसीलिए समकालीन है, क्योंकि वह बिजली के संकट के प्रति हमें प्रीतिकर ढंग से सजग करता है। वह समग्र ‘विद्युत चिंतन’ है। बिजली की समस्या पर यह शायद पहली और आखिरी कविता है। वह विश्व की एकमात्र ऐसी कविता है, जो बिजली जैसे विषय पर लिखी गई है। मैं यह स्पष्ट कर दूं कि अन्य कवियों के बारे में हर दूसरे दिन ऐसा दावा करते रहने वालों की तरह मुझे भी विश्व की कोई भाषा नहीं आती, लेकिन मैं पीछे क्यों रहूं? यारों को ‘अंधेरे में’ पता नहीं क्या-क्या सूझा। एक ने इसे ‘अभिव्यक्ति की खोज’ बताया, दूसरे ने ‘अस्मिता की खोज’, तीसरे ने इसे ‘भयानक खबर की कविता’ बताया, चौथे ने ‘लाल क्रांति की किताब’ और पांचवें ने इसे सीजोफ्रेनिक कवि की कविता। तो आइए करें- अंधेरे में डिस्को।

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