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अचेतन लाभ और हानि

अचेतन लाभ और हानि
यदि आप कर योग्य में निवेश करते हैं दलाली खाते , तो आपके वास्तविक लाभ पर कर आपके नेट को प्रभावित कर सकते हैं निवेश रिटर्न .

प्रतिस्पर्धा क्या है?

एक अवास्तविक लाभ क्या है?

हालांकि, सिर्फ इसलिए कि संपत्ति के मूल्य में वृद्धि हुई है इसका मतलब यह नहीं है कि आपने उस मूल्य पर कब्जा कर लिया है। यदि आप इसे नहीं बेचते हैं और कीमत गिरती है, तो आपको लाभ नहीं मिलेगा। जब ऐसा होता है, तो लाभ को "अवास्तविक" कहा जाता है। जब आप एक निवेश को अवास्तविक लाभ के साथ बेचते हैं, तो वह लाभ प्राप्त हो जाता है क्योंकि आपको बढ़ा हुआ मूल्य प्राप्त होता है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आप a buy खरीदते हैं स्टॉक का हिस्सा $45 के लिए। यदि कीमत $ 55 तक बढ़ जाती है, तो आपको $ 10 का अवास्तविक लाभ होता है।

स्पष्ट रूप से यह देखने के लिए कि एक अवास्तविक लाभ क्या है, इस बारे में सोचें कि आपके पास क्या है यदि शेयर की कीमत आपके बेचने से पहले $ 45 तक गिर जाती है। उस समय, आपके पास केवल स्टॉक का एक हिस्सा होता है जिसकी कीमत एक बार फिर $45 है। आपने $10 के लाभ पर कब्जा नहीं किया, या "एहसास" नहीं किया।

अवास्तविक लाभ कैसे काम करते हैं

मुख्य कारण आपको यह समझने की आवश्यकता है कि अवास्तविक लाभ कैसे काम करता है, यह जानना है कि यह आपके कर बिल को कैसे प्रभावित करेगा। अवास्तविक लाभ पर आम तौर पर कर नहीं लगता है। जब तक आप अपना निवेश बेचते हैं और लाभ का एहसास नहीं करते हैं, तब तक आप पर कोई कर देनदारी नहीं बनती है।

हालांकि, सभी प्राप्त लाभों पर समान दर से कर नहीं लगाया जाता है। दो अलग-अलग अचेतन लाभ और हानि कर संरचनाएं हैं जो इस बात पर निर्भर करती हैं कि प्राप्त लाभ दीर्घकालिक या अल्पकालिक हैं या नहीं।

एक अल्पकालिक पूंजीगत लाभ वह है जो निवेश खरीदने के एक वर्ष के भीतर प्राप्त होता है। अल्पकालिक पूंजीगत लाभ पर आपकी साधारण आयकर दर पर कर लगाया जाता है।

लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ ऐसे लाभ हैं जिन्हें तब तक महसूस नहीं किया जाता है जब तक कि आपने निवेश खरीदा कम से कम एक वर्ष बीत चुका हो। लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ पर कर की दर आपकी कर योग्य आय पर निर्भर करती है, लेकिन यह आपकी आयकर दर से कम है।

अवास्तविक लाभ बनाम। अवास्तविक नुकसान

एक अवास्तविक लाभ के विपरीत एक अचेतन हानि है। यदि आपके निवेश का अचेतन लाभ और हानि मूल्य आपके द्वारा इसे खरीदने के बाद गिरता है, तो आपको पूंजीगत हानि होती है। जब तक आप निवेश को बेच नहीं देते तब तक नुकसान का एहसास नहीं होता है।

उदाहरण के लिए, यदि आपने पिछले उदाहरण में $45 पर स्टॉक खरीदा था, तो कीमत गिरकर $35 हो गई, $10 की कीमत में गिरावट एक अचेतन हानि है। यदि आप स्टॉक को $ 35 पर बेचते हैं, तो आपका अवास्तविक नुकसान $ 10 का वास्तविक नुकसान बन जाता है।

आपकी कर देयता निर्धारित करने के उद्देश्यों के लिए पूंजीगत लाभ को ऑफसेट करने के लिए वास्तविक पूंजीगत हानियों का उपयोग किया जा अचेतन लाभ और हानि सकता है।

प्रतिस्पर्धा क्या है? परिभाषा, विशेषताएं

pratispardha arth paribhasha visheshta;प्रतिस्पर्धा अथवा प्रतियोगिता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे सीमित साधन, वस्तु अथवा पद को पाने के लिए दो या दो से अधिक व्यक्ति एक साथ प्रयास करते है।
प्रतिस्पर्धा या प्रतियोगिता को एक असहगामी सामाजिक प्रक्रिया माना गया है। इसका कारण यह है कि प्रतिस्पर्द्धियों मे कम या अधिक मात्रा मे एक-दूसरे के प्रति कुछ ईर्ष्या-द्वेष के भाव अचेतन लाभ और हानि पाये जाते है। प्रत्येक दूसरों को पीछे रखकर स्वयं आगे बढ़ना चाहता है, अपने उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है। अत्यधिक या अनियंत्रित प्रतिस्पर्धा समाज मे संगठन को ठेस पहुँचाती है और उसे विघटन की ओर ले जाती है, परन्तु साथ ही प्रतिस्पर्धा व्यक्तियों, समूहों और राष्ट्रों को प्रगति करने, आगे बढ़ने तथा अपनी स्थिति को ऊंचा उठाने की प्रेरणा भी देती है। कुशलतापूर्वक निरन्तर प्रयत्न करते रहने को प्रोत्साहित करती है, कार्य को उत्तमता के साथ पूरा करने मे मदद देती है।
आगे अचेतन लाभ और हानि जानेंगे प्रतिस्पर्धा की परिभाषा और प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) की विशेषताएं।

प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) की परिभाषा (pratispardha ki paribhasha)

ग्रीन के अनुसार " प्रतिस्पर्धा मे दो या अधिक व्यक्ति या समूह समान लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करते है जिसको कोई भी दूसरों के साथ बांटने के लिए न तो तैयार होता है और न ही इसकी अपेक्षा की जाती है।
बोगार्डस के अनुसार " प्रतिस्पर्धा किसी ऐसी वस्तु को प्राप्त करने के लिए एक प्रकार की होड़ है जो इतनी मात्रा मे नही पायी जाती जिससे की माँग की पूर्ति हो सके।"
मैक्स बेवर के अनुसार " प्रतिस्पर्धा शांति पूर्ण संघर्ष है। "
फेयरचाइल्ड के अनुसार " सीमित वस्तुओं के उपयोग या अधिकार के लिए किया जाने वाला प्रयत्न प्रतिस्पर्धा है। "
बीसेंज और बीसेन्ज के अनुसार " दो या अधिक व्यक्तियों के द्वारा समान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्न को प्रतिस्पर्धा कहते है, जिसके सब हिस्सेदार नही बन सकते क्योंकि वे समान लक्ष्य सीमित है।"

प्रतिस्पर्धा (प्रतियोगिता) की विशेषताएं (pratispardha ki visheshta)

1. प्रतिस्पर्धा समाज मे दो या दो से अधिक व्यक्तियों, समूहों के मध्य होने वाली होड़ है जिसमे व्यक्ति अथवा समूह नियबध्द तरीके से निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने का प्रयास करते है।
2. प्रतिस्पर्धा मे किसी तीसरे पक्ष का होना आवश्यक है जिसके समर्थन को प्राप्त करने का प्रयत्न दोनों पक्षों के द्वारा किया जाता है। दो व्यक्तियों के लिए तीसरा पक्ष ग्राहक, दो प्रेमियों के लिए वह युवती जिसका प्रेम पाने के दोनों लालायित है और परीक्षार्थियों के लिए परीक्षक है।
3. प्रतिस्पर्धा समाज मे वस्तुओं/पदों की सीमित मात्रा होने कारण होती है, क्योंकि उन वस्तुओं अथवा पदों को सभी प्राप्त करना चाहते है। यहि कारण है कि मैक्स बेवर ने प्रतिस्पर्धा को शांतिपूर्ण संघर्ष माना।
4. प्रतिस्पर्धा असहयोगी सामाजिक प्रक्रिया का एक स्वरूप है क्योंकि व्यक्ति इसमे एक दूसरे का सहयोग नही करते। लेकिन गिलिन और गिलिन ने इसे सहयोग सामाजिक प्रक्रिया माना है।
5. प्रतिस्पर्धा एक विशेषता यह है कि यह सामान्यतः एक अवैयक्तिक क्रिया होती है। आई.ए.एस. या आर.ए.एस. या माध्यमिक बोर्ड की परीक्षाओं मे बैठने वाले परीक्षार्थियों की संख्या हजारों-लाखों मे होती है, जो अपने-अपने तरीके से परिक्षा की तैयारी करते है और जिन्हें एक-दूसरे के बारे अचेतन लाभ और हानि मे कोई जानकारी साधारणतः नही होती। प्रतिस्पर्धा करने वाले एक-दूसरे से अपरिचित होते हुए भी नियमों के अनुसार लक्ष्य-प्राप्ति की कोशिश करते रहते है, परन्तु कई बार प्रतिस्पर्धा करने वाले व्यक्तियों मे सीधा तथा वैयक्तिक सम्पर्क भी होता है, उदाहरण के रूप मे, एक ही स्थान या नागर के दो व्यापारियों या उद्योगपतियों के बीच पायी जाने वाली प्रतिस्पर्धा।
6. प्रतिस्पर्धा सार्वभौमिक प्रक्रिया है। प्रत्येक समाज मे प्रत्येक समय मे प्रतिस्पर्धा किसी न किसी रूप मे पायी जाती रही है ऐसा कोई समाज नही जहाँ जितने व्यक्ति उतनी वस्तुएं, उतनी मात्रा मे रोजगार उपलब्ध हो अतः माँग और पूर्ति मे असंतुलन अचेतन लाभ और हानि सभी समाजों मे पाया जाता है।अतः प्रतिस्पर्धा भी सार्वभौमिक प्रक्रिया है।
7. प्रतिस्पर्धा अचेतन प्रक्रिया है। प्रतिस्पर्धा व्यक्ति एक दूसरे के प्रयत्नों के प्रति जागरूक नही होते है। प्रतिस्पर्धा मे संलग्न व्यक्ति अपने प्रयत्नों के प्रति जागरूक रहते है पर सभी प्रतियोगियों के बारे मे जागरूक नही रहते। अतः प्रतिस्पर्धा पर अचेतन प्रक्रिया है।
7. प्रतिस्पर्धा की एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि प्रतिस्पर्धा मे अहिंसात्मक तरीके से लक्ष्य प्राप्ति का प्रयत्न किया जाता है। जहां संघर्ष मे हिंसा या हिंसा की धमकी का सहारा लिया जाता है, वहां प्रतिस्पर्धा मे अहिंसात्मक तरीकों पर जोर दिया जाता है।
8. प्रतिस्पर्धा एक निरन्तर प्रक्रिया है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे प्रतिस्पर्धा हर समय पायी जाती है।
9. प्रतिस्पर्धा जन्मजात प्रवृत्ति नही बल्कि यह सांस्कृतिक रूप से प्रतिमानित प्रक्रिया है। इसकी मात्रा सामाजिक संरचना एवं सामाजिक मूल्यों से निर्धारित होती है।

जिस दिन मनुष्य सरल बन जाएगा उसे प्रेम करना आ जाएगा

जिस दिन मनुष्य सरल बन जाएगा उसे प्रेम करना आ जाएगा

जिस प्रकार स्वस्थ रहना, सुखी रहना और आनंदित रहना, मनुष्य की चाहत है, उसी प्रकार प्रेम करना, प्रेम का अनुभव करना, अपने जीवन को प्रेममय बनाना मनुष्य का कर्तव्य है। दरअसल अप्रेम एक बीमारी है, उसी प्रकार अपने स्वभाव धर्म से गिर जाना भी बीमारी का लक्षण है।
इस दुनिया में प्रेम के सिवाय और कुछ है ही नहीं। जब नदी सागर से प्रेम करती हो, भंवरे फूल से प्रेम करते हों, चांद, सूरज, ग्रह, नक्षत्र हम सभी से प्रेम करते हुए हमें जीवनदान देते हैं, तो ऐसा मान लेना चाहिए कि प्रकृति में प्रेम के सिवाय और कुछ नहीं है। ईष्र्या, द्वेष, घृणा, हिंसा और क्रोध इन सभी को विकार कहा गया है। इनके जीवन में आते ही मनुष्य की स्वाभाविक आकृति विकृत हो जाती है। इसलिए जब कभी हम अप्रेम की बात सोचते हैं, तो उसमें हमारा अपना स्वरूप नष्ट हो जाता है। हमारा अपना स्वरूप है, प्रेम शालीनता और आत्मीयता अचेतन लाभ और हानि का प्रतीक है। विज्ञान में चेतन मन का महत्व माना गया है, लेकिन प्रेम अचेतन मन को स्वीकार करता है। जहां केवल सरलता हो। प्रेम कभी भी टेढ़े-मेढ़े रास्ते से नहीं चलता। प्रेम है, तो है। इसलिए प्रेम की परिभाषा नहीं होती। जिस दिन मनुष्य सरल बन जाएगा, उसे प्रेम करना आ जाएगा। उसी सरलता की बात कह रहा हूं। सच पूछा जाए, तो मनुष्य स्वयं ही अचेतन लाभ और हानि सरल बनकर जीना चाहता है। विकारयुक्त जीवन किसी को पसंद नहीं है, लेकिन हमारे चारों ओर जो अचेतन लाभ और हानि परिस्थितियां बनती हैं, उनसे हम प्रभावित होते हैं और अप्रेम और घृणा की भाषा बोलने लगते हैं। इसमें केवल हमारा दोष है।
दूसरे लोग कहते हैं, सबसे प्यार करो। यह कोई नहीं कहता कि पहले स्वयं से प्यार करना सीखिए, पहले स्वयं पर प्रयोग करें, आपको प्रेम करना आ जाएगा। अभी आप प्रेम करने की विधि भूल चुके हैं और कहीं-न-कहीं आप स्वयं को भूल चुके हैं। इसलिए पहले स्वयं से प्रेम करें, आपका यही प्रेम बहकर चारों ओर फैल जाएगा। इसे बहने दें। प्रेम के संदर्भ में यह बात महत्वपूर्ण है कि प्रेम बेशर्त होता है। जहां पर शर्त होगी, वहां प्रेम नहींहोगा। वस्तुत: प्रेम व्यवसाय या कारोबार नहींहै, जो लाभ-हानि के गणित से संचालित होता हो। जहां गणित है, वहां प्रेम हो ही नहींसकता। प्रेम देना चाहता है, लेना नहीं। मां का बेटे से जो प्रेम होता है, वह नि:स्वार्थ होता है। पति और पत्नी के संबंधों की बुनियाद भी प्रेम पर आधारित होती है, लेकिन जब दोनों के मध्य प्रेम के नाम पर दुनियादारी का गणित शुरू हो जाता है, तभी उनके रिश्तों में दरार पड़ने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

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