क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है?

क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है?
10 लाख रूपये तक अर्जित किए गए ब्याज पर टीडीएस दर- 30.90%
10 लाख रूपये से अधिक अर्जित किए गए ब्याज पर टीडीएस दर- 33.99% अधिभार शुल्क सहित
- दिनांकित सरकारी प्रतिभूतियों (धारक प्रतिभूतियों के अतिरिक्त), कोषागार बिलों, घरेलू म्यूचुअल फंडों में
- पीएसयू (PSUs) द्वारा जारी बॉन्डों में
- भारत सरकार द्वारा विनिवेशित सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों में ऐसे निवेशों के लिए निधि विदेशी प्रेषण अथवा एनआरआई/एफसीएनआर खातों के माध्यम से प्राप्त होनी चाहिए.
- निवेशी कंपनी, भारतीय रिर्ज़व बैंक के स्वचालित माध्यम के अतिरिक्त किसी अन्य गतिविधि में संलग्न न हो
- निवेश भारतीय रिर्ज़व बैंक के विनिर्दिष्टानुसार सेक्टरवार सीमाओं के अंतर्गत हो
- निवेशों के लिए निधियां, विदेशी आंतरिक प्रेषण के माध्यम से या एनआरई/एफसीएनआर खातों के माध्यम से प्राप्त हुई हो.
- विनिवेश राशि के आगम किसी शेयर दलाल के माध्यम से प्रचलित बाजार मूल्य पर किसी मान्यताप्राप्त स्टॉक एक्सचेंज के द्वारा भारतीय करों को काटकर भेजी जानी हो.
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रिजर्व बैंक शुरू कर रहा रुपये में ग्लोबल ट्रेड सेटलमेंट, कैसे काम करेगा यह सिस्टम और कितना होगा फायदा?
डॉलर के मुकाबले रुपया 79.60 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया है.
डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में आ रही गिरावट और विदेशी मुद्रा भंडार पर बढ़ते दबाव से बचने के लिए आरबीआई ने नया ट्रेड . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : July 14, 2022, 13:17 IST
हाइलाइट्स
दुनिया के बाकी देश डॉलर, येन, यूरो और पाउंड में ही ग्लोबल ट्रेडिंग करते हैं.
रिजर्व बैंक का मकसद रुपये पर डॉलर व अन्य करेंसी का दबाव घटाना है.
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10 महीने के आयात के लिए पर्याप्त है.
नई दिल्ली. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने ग्लोबल मार्केट में भारत की पहुंच बढ़ाने और ट्रेडिंग को आसान बनाने के लिए आयात-निर्यात का सेटलमेंट रुपये में कराने की बात कही है. यह सिस्टम किस तरह से काम करेगा और भारत को इसका क्या फायदा मिलेगा. कमोडिटी एक्सपर्ट इसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा मूव बता रहे हैं.
कमोडिटी एक्सपर्ट अजय केडिया का कहना है कि अभी नेपाल-भूटान को छोड़कर दुनिया के बाकी देश डॉलर, येन, यूरो और पाउंड में ही ग्लोबल ट्रेडिंग करते हैं. आरबीआई के नई व्यवस्था शुरू करने के बाद रुपये में भी ट्रेडिंग का रास्ता खुल जाएगा. आरबीआई का कहना है कि इस सिस्टम के शुरू होने के बाद भारत के एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि दुनिया ने रुपये में दिलचस्पी दिखाई है.
क्या रूस से व्यापार बढ़ाने की है तैयारी
वैसे तो रिजर्व बैंक का मकसद रुपये पर डॉलर व अन्य करेंसी का दबाव घटाना है, जिसके लिए नया सिस्टम डेवलप किया जा रहा है, लेकिन कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि इस कदम से रूस के साथ व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी. दरअसल, यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू होने के बाद से रूस पर कई प्रतिबंध लग चुके हैं और वह अपना रिजर्व डॉलर इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है. ऐसे में नया सिस्टम आने के बाद रूस से व्यापार बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसके अलावा ईरान सहित व्यापारिक प्रतिबंध झेल रहे अन्य देशों के साथ भी भारत अपना व्यापार बढ़ा सकेगा.
विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ कम होगा
रिजर्व बैंक का सबसे बड़ा मकसद विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ को घटाना है. आरबीआई के पास मौजूद करीब 590 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार वैसे तो 10 महीने के आयात के लिए पर्याप्त है, लेकिन अभी इसका इस्तेमाल रुपये पर बढ़ते दबाव को घटाने में हो रहा है. नया सिस्टम आने के बाद अगर ग्लोबल मार्केट में कोई देश हमसे भारतीय करेंसी में लेनदेन करता है तो इससे विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव कम हो जाएगा. इतना ही नहीं ग्लोबल मार्केट में रुपये की स्वीकार्यता भी बढ़ जाएगी. तत्काल तो नहीं लेकिन धीरे-धीरे देश रुपये को स्वीकार कर लेंगे तो ग्लोबल मार्केट में यह डॉलर के मुकाबले खड़ा हो सकता है.
कैसे काम करेगा नया सिस्टम
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (फियो) के सीईओ अजय सहाय का कहना है कि ग्लोबल मार्केट में रुपये में ट्रेड करने के लिए दूसरे देश को भी रुपये में पेमेंट लेने का सिस्टम बनाना होगा. आरबीआई के लिए कुछ भारतीय बैंकों को वेस्ट्रो अकाउंट खोलने की इजाजत देगा. ये बैंक दूसरे देशों की करेंसी को अपने पास रखेंगे. इसके तहत जब भारतीय कारोबारी निर्यात करेंगे तो वह अपने रेगुलर बैंक के जरिये वेस्ट्रो अकाउंट वाले बैंक को जानकारी भेजेगा. वेस्ट्रो खाते वाले बैंक से पैसा निर्यातक के रेगुलर बैंक खाते में ट्रांसफर कर दिया जाएगा.
इसी तरह, जब कोई कारोबार आयात करेगा तो वह इसका भुगतान अपने रेगुलर बैंक को करेगा, जहां से पैसा वेस्ट्रो खाते वाले बैंक में चला जाएगा. मुद्रा की कीमत दोनों देशों के फॉरेक्स के हिसाब से लगाई जाएगी.
ईरान के साथ शुरू किया था ऐसा सिस्टम
भारत ने इससे पहले ईरान के साथ व्यापार के लिए ऐसा ही सिस्टम विकसित किया था. तब ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते डॉलर में कारोबार ठप हो गया था. ईरान से तेल खरीद का भुगतान भी रुपये में किया गया था. हालांकि, 2019 में ईरान से तेल का आयात बंद होने के बाद यह खाता भी ठप हो गया.
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ब्लॉग: चीन के चक्रव्यूह में फंसते भारत के पड़ोसी, श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह नेपाल का भी कम हो रहा विदेशी मुद्रा भंडार
चीन के चक्रव्यूह में फंसते भारत के पड़ोसी (फाइल फोटो)
चेतावनी गंभीर है. अभी तक बांग्लादेश बचा हुआ था, लेकिन अब वह भी गिरफ्त में आ गया. चीन के चक्कर में आत्मघाती रास्ते पर चल पड़ा है. मुश्किल है कि उसे समझ में तो आ गया, मगर चीनी चक्रव्यूह से बाहर कैसे निकले, वह नहीं समझ पा रहा है. बांग्लादेश के वित्त मंत्री मुस्तफा कमाल का ताजा बयान इसका सबूत है. उनके इस बयान ने अनेक देशों में खलबली मचा दी है.
मुस्तफा कहते हैं कि चीन अपने कर्ज जाल में फांसकर गरीब देशों को तबाह कर रहा है. छोटे मुल्कों को चीन के कर्ज से बचना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि चीन की शर्तें बेहद खराब और सख्त हैं. उनमें पारदर्शिता नहीं है. उनसे बेईमानी की बू आती है. वित्त मंत्री का बयान इसलिए भी गौरतलब है कि वे पहले वित्त मंत्री हैं, जिन्होंने अपनी सरकार की ओर से अधिकृत बयान दिया है.
अभी तक चीनी ऋण के मारे मुल्क उसके आगे चूं तक नहीं करते थे. वे जानते थे कि अब इस कर्ज जाल से बाहर निकलना उनके लिए कठिन है. इसलिए चुप्पी साधे अपनी बर्बादी देखते रहते थे. पहले पाकिस्तान और उसके बाद श्रीलंका का हाल सारी दुनिया देख रही है. बांग्लादेश ने पहली बार यह साहस दिखाया है.
बांग्लादेश की स्थिति को तनिक विस्तार से समझना होगा. जब मुस्तफा कमाल कहते हैं कि चीन का बेल्ट एंड रोड अच्छा है तो उसका मतलब चीन के अपने हितों के बारे में है. लेकिन वे आगे खुलासा करते हैं कि इसी परियोजना के कारण छोटे और विकासशील राष्ट्र तबाह हो रहे हैं. चीन एक बड़ा देश है. वह जो धन इस परियोजना में पूंजी के तौर पर लगा सकता है, उतना कई देशों का साल भर का बजट है. ऐसे में छोटे और मंझोले देश अपनी प्राथमिकताओं को पीछे धकेल देते हैं और चीन के चंगुल में फंस जाते हैं.
बेल्ट एंड रोड में करीब सत्तर देशों को जोड़ने का इरादा है. उन्हें रेल, सड़क और समुद्री मार्गों के जरिये आपस में क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? जोड़ा जाएगा. छह साल पहले बांग्लादेश इस परियोजना में शामिल होने को राजी हुआ. बांग्ला प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच करार हुआ. कुल छब्बीस अरब डॉलर में से 14 अरब डॉलर संयुक्त रूप से खर्च किए जाने थे. इसी बीच रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ गई. बांग्लादेश में पेट्रोल, डीजल तथा कच्चे तेल के अन्य उत्पादों की कीमतें आसमान में जा पहुंची.
बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार चालीस अरब डॉलर से भी कम रह गया है. यानी मुल्क के पास केवल चार-पांच महीने तक आयात करने लायक भंडार बचा है. अब वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत अनेक बड़ी संस्थाओं के आगे सहायता के लिए गिड़गिड़ा रहा है. उसका संकटकालीन फंड चीन के साथ परियोजना में खर्च हो चुका है. यही उसका संकट है. भारत से भी उसने मदद की गुहार की है. इसके पीछे बड़ा कारण यह है कि बांग्लादेश आज रेडीमेड वस्त्रों का सबसे बड़ा निर्यातक है और उसके लिए सारा कच्चा माल यानी कॉटन भारत से जाता है. यदि भारत भी कॉटन देने से मना कर दे तो बांग्लादेश की हालत और खराब हो जाएगी. ऐसे में वह भारत से उधार माल चाहेगा.
बांग्लादेश के बाद आइए नेपाल की ओर. रविवार को नेपाल में नई संसद और विधानसभाओं के लिए मतदान हुआ. इस पूरे चुनाव प्रचार में चीन की भूमिका का भी बड़ा मुद्दा छाया रहा. सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस के मुखिया और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा भारत के प्रति सहानुभूति रखने वाले माने जाते हैं और चीन के नेपाल में बढ़ते आर्थिक प्रभाव को पसंद नहीं करते. लेकिन सरकार में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (सीपी एनएमसी) के सर्वेसर्वा पुष्प कमल दहल प्रचंड का चीन के प्रति मोह जगजाहिर है.
उनके सामने पूर्व प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के नेतृत्व में विपक्ष का गठबंधन है. इसमें कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल - यूनाइटेड मार्कसिस्ट (सीपीएन- यूएमएल) के साथ राजशाही समर्थक और हिंदूवादी पार्टी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) है जो 150 सीटों पर एफपीटीपी व्यवस्था के तहत चुनाव लड़ रही है. विपक्ष के मोर्चे में भी वैचारिक अंतर्विरोध छिपे नहीं हैं. दोनों पक्षों में अंदर-अंदर चीन के समर्थन और विरोध के सुर उभरते रहे हैं. इस बार नेपाल में महंगाई आसमान पर है और अवाम इसके लिए चीन को जिम्मेदार मानती है.
चीन के बेल्ट एंड रोड पर भी नेपाल की सियासत बंटी हुई है. मगर बहुमत यह मानता है कि नेपाल ने 2017 में जो समझौता चीन से किया था, उसने नेपाल की हालत खस्ता कर दी है. यही नहीं, चीन से आने वाले सामान पर नेपाल में कोई कर नहीं लगता. इस एकतरफा सौदे में नेपाल को घाटा ही है. लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के बावजूद वह चीनी माल पर कोई टैक्स नहीं लगा पा रहा है. अब चीन नेपाल सरकार पर यह दबाव डाल रहा है कि पाकिस्तान की तरह वहां क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? भी चीनी मुद्रा प्रचलन में आ जाए. इससे नेपाल को कोई लाभ नहीं होने वाला है.
चीन के इस असर का परिणाम है कि श्रीलंका और बांग्लादेश की तरह नेपाल का भी विदेशी मुद्रा भंडार कम हो रहा है. मौजूदा हाल में नेपाल लगभग छह महीने ही आयात की स्थिति में है. छह-सात महीने पहले नेपाल का विदेशी मुद्रा भंडार 975 करोड़ डॉलर था. इसमें लगातार गिरावट आई है. यदि पिछले साल से तुलना करें तो क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? करीब 1200 करोड़ डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार के साथ नेपाल बेहतर स्थिति में था. कोई पच्चीस हजार करोड़ नेपाली रुपए की भंडार में कमी देश की चिंता बढ़ाती है.
भारत के इन तीनों पड़ोसियों पर चीन अब अपने क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? कर्ज की वसूली के लिए दबाव डाल रहा है. इन मुल्कों की हालत अभी ऋण चुकाने की नहीं है. बांग्लादेश ने चार अरब डॉलर का कर्ज लिया है. श्रीलंका को चीन के 37000 करोड़ रुपए चुकाने हैं और नेपाल पहले ही चीन के 6. 67 अरब रुपए के कर्ज में डूबा है.
क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है?
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विदेशी मुद्रा सिग्नल क्या हैं?
विदेशी मुद्रा सिग्नल या 'व्यापार विचार' व्यापार सेटअप हैं जो आपके अनुसरण के लिए एक उच्च संभावना और अच्छे जोखिम-से-पुरस्कार परिदृश्य प्रदान करते हैं। वे विशिष्ट प्रवेश मूल्य, टेक प्रॉफिट (टीपी) लक्ष्य और स्टॉप लॉस (एसएल) प्रदान करते हैं। एक प्रवेश मूल्य वह है जहां हम व्यापार में प्रवेश करते हैं। टेक प्रॉफिट वह कीमत है जिसके बारे में हमें विश्वास है कि कीमत जाएगी, और स्टॉप लॉस वह है जहां हम अपने नुकसान को कम करते हैं यदि व्यापार हमारे अनुसार नहीं होता है। विदेशी मुद्रा व्यापार संभावनाओं का एक खेल है, और हालांकि नुकसान खेल का हिस्सा हैं, क्या मायने रखता है कि हमारे जीतने वाले व्यापार हमारे नुकसान से अधिक हैं, जो हमने 2015 से किया है।
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किसी भी अनुभव स्तर पर व्यापारियों के लिए विदेशी मुद्रा संकेत बहुत अच्छे हैं। शुरुआती से मध्यवर्ती से उन्नत व्यापारियों तक, विदेशी मुद्रा संकेत विभिन्न तरीकों से उपयोगी हो सकते हैं। लेकिन आम तौर पर वे क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? उन लोगों के लिए सबसे उपयोगी होते हैं जिनके पास पूरे दिन मूल्य चार्ट की निगरानी के लिए बहुत समय नहीं होता है। हम आपको विदेशी मुद्रा संकेत के रूप में बाजार में दिखाई देने वाले सेटअप भेजकर चार्ट के सामने समय बचाने में आपकी सहायता करते हैं। यदि आप निम्न में से किसी भी श्रेणी में आते हैं तो आप हमारे विदेशी मुद्रा संकेतों का उपयोग कर सकते हैं:
शुरुआती व्यापारी:
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हारने वाला व्यापारी:
आप 3-12 महीनों से, या शायद अधिक समय से व्यापार कर रहे हैं (या व्यापार करने की कोशिश कर रहे हैं)। आप अभी भी एक अच्छी ट्रेडिंग रणनीति की तलाश में हैं जो आपके लिए काम करेगी। हमारे विदेशी मुद्रा संकेत आपको इस बात का बोध कराएंगे कि हम अपने लक्ष्य कहां निर्धारित करना चाहते हैं और नुकसान को रोकना चाहते हैं, साथ ही दिन के समय में हम एक व्यापार में प्रवेश करना चाहते हैं।
हमारी शैक्षिक पुस्तकालय आपको यह भी सिखाएगी कि एक पेशेवर की तरह चार्ट कैसे बनाया जाए। आप सीखेंगे कि मार्केट स्ट्रक्चर ब्रेक जैसे पैटर्न की पहचान कैसे करें, और तरलता पर आकर्षित करें। आप सीखेंगे कि अपने व्यापार में अच्छा जोखिम प्रबंधन कैसे लागू करें और अपनी पूंजी का प्रबंधन कैसे करें ताकि आप अपना खाता उड़ा सकें।
ब्रेक-ईवन ट्रेडर:
आपके पास 1-3 साल का ट्रेडिंग अनुभव है। हालांकि, आपको अभी तक एक वास्तविक व्यापारिक बढ़त नहीं मिली है और आप अपनी रणनीतियों के साथ लगातार लाभप्रद हैं। हम आपको यह दिखाने में मदद करेंगे कि प्रो ट्रेडर्स फॉरेक्स सिग्नल में क्या खोजते हैं और विश्लेषण भी जो इसका समर्थन करता है।
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आप पहले से ही एक निरंतरता और लाभदायक व्यापारी बनने की स्थिति हासिल कर चुके हैं, लेकिन आप जानते हैं कि सुधार के लिए हमेशा जगह है। हो सकता है कि आप स्मार्ट मनी ट्रेडिंग अवधारणाओं के साथ अपनी बढ़त में सुधार करना चाह रहे हों। या आप चार्ट पर समय बचाने में मदद करने के लिए विदेशी मुद्रा संकेतों के एक विश्वसनीय स्रोत की तलाश कर रहे हैं।
मुद्रा संकट के डर से विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाते रहने के उलटे नतीजे भी मिल सकते हैं
रिजर्व बैंक के पास अब 608 अरब डॉलर का भंडार जमा हो गया है और भारत दुनिया में सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार रखने वाला पांचवां देश बन गया है लेकिन यह अंततः रुपये को कमजोर ही करेगा
चित्रणः रमनदीप कौर । दिप्रिंट
नये आंकड़े बताते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) का विदेशी मुद्रा भंडार बहुत तेजी से बढ़ रहा है. अप्रैल 2020 के बाद से आरबीआइ के डॉलर के भंडार में 100 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है और यह कुल 608 अरब डॉलर का हो गया है. इस तरह भारत दुनिया में सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार रखने वाला पांचवां देश बन गया है.
केंद्रीय बैंक इसे उचित ठहराने के लिए विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार रखने की बातें कर रहा है. कहा जा रहा है कि आरबीआइ सिर्फ इतना बड़ा भंडार रखता है जो आयात के 15 महीने के बिल का भुगतान करने को पर्याप्त हो जबकि दूसरे देश इससे ज्यादा का भंडार रखते हैं. स्विट्ज़रलैंड, जापान, रूस, चीन भारत की तुलना में ज्यादा बड़ा भंडार रखते हैं जो क्रमशः 39, 20, 16 महीने के आयात बिल के लिए पर्याप्त हो. लेकिन पिछले दो दशकों से आरबीआइ मुद्रा की गतिविधियों के मद्देनजर विदेशी मुद्रा भंडार रखने लगा है.
मुद्रा पर नज़र, लेकिन मुद्रास्फीति के लक्ष्य के विपरीत
विदेशी मुद्रा भंडार में हाल में जो वृद्धि हुई है वह रुपये की कीमत में वृद्धि को रोकने की कोशिश के तहत हुई है. जून 2020 में रुपया-डॉलर विनिमय दर 75.6 थी, आज यह मामूली सुधार के साथ 72.8 है. आरबीआइ के हस्तक्षेप के कारण बड़ी मूल्य वृद्धि को रोका जा सका. मुद्रा के साथ ऐसे खेल से दूसरे देश तो नाराज होते ही हैं, यह मुद्रास्फीति को बढ़ाने के कारण महंगा भी पड़ता है.
इसके अलावा, अगर मुद्रा पर अटकलों का गहरा हमला होता है तब गिरावट को रोकने के लिए भंडार का इस्तेमाल नहीं किया जाता. पहले, आरबीआइ रुपये की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए मुद्रा नीति को सख्त करता था और पूंजीगत नियंत्रणों का प्रयोग करता था, न कि अपने अरबों की बिक्री करता था. केंद्रीय बैंक रुपये की मूल्यवृद्धि नहीं चाहता क्योंकि यह निर्यातों को गैर-प्रतिस्पर्द्धी बना देता है. इसलिए वह डॉलर खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा बाज़ार में क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है? हस्तक्षेप करता है.
चीन ने दशकों तक यह रास्ता अपनाया, जिसे ‘पड़ोसी को भिखारी बनाओ’ वाली नीति कहा जाता है क्योंकि यह दूसरे देशों का बुरा हाल करता है. इस साल अप्रैल में अमेरिका ने भारत को उन देशों में शुमार रखने का फैसला किया, जो ‘करेंसी मैनीपुलेटर’ (मुद्रा के साथ खेल करते) हैं. भारत दिसंबर 2020 से ऐसे देशों में शुमार है.
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अमेरिका उन देशों को ‘करेंसी मैनीपुलेटर’ की सूची में डाल देता है, जो 12 महीने की अवधि में इन तीन में से दो कसौटियों को पूरा करते हैं—1. अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार सरप्लस 20 अरब डॉलर पर पहुंच गया हो; 2. करेंट अकाउंट सरप्लस जीडीपी के कम-से-कम 2 प्रतिशत के बराबर हो; 3. विदेशी मुद्रा की कुल खरीद देश के जीडीपी के कम-से-कम 2 प्रतिशत के बराबर हो. अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने अप्रैल में जो रिपोर्ट जारी की है उसके अनुसार, भारत को इस सूची में इसलिए रखा गया क्योंकि पिछले 12 महीने में आरबीआइ ने जीडीपी के 5 प्रतिशत के बराबर विदेशी मुद्रा की खरीद की, और अमेरिका के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार सरप्लस 20 अरब डॉलर से ज्यादा का हो गया.
मुद्रा के मामले में आरबीआइ के हस्तक्षेप के कई नुक़सानों में सबसे अहम यह है कि इसके विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि घरेलू वित्तीय व्यवस्था में पैसे की सप्लाइ बढ़ा देती है. इससे मुद्रास्फीति के दबाव पैदा होते हैं और यह अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकता है.
क्या विदेशी मुद्रा भंडार घरेलू मुद्रा को कमजोर नहीं होने देता?
बड़े विदेशी मुद्रा भंडार को इसलिए भी उपयोगी माना जाता है कि यह केंद्रीय बैंक को मुद्रा को कमजोर होने से बचाने की पर्याप्त ताकत देता है. अगर डॉलर के मुक़ाबले मुद्रा का मूल्य घटने लगता है तब केंद्रीय बैंक डॉलर के भंडार में से बिक्री करके स्थानीय मुद्रा की खरीद कर सकता है और उसका मूल्य गिरने से रोक सकता है. लेकिन मुद्रा पर जब अटकलों के कारण दबाव हो तब ऐसा शायद ही हो पाता है.
अमेरिकी सरकार से मिले विशाल वित्तीय पैकेज के कारण उसकी अर्थव्यवस्था में काफी सरगर्मी है, और मुद्रास्फीति बढ़ रही है. ऐसे में अमेरिकी फेडरल रिजर्व पॉलिसी ब्याज दर में वृद्धि कर सकता है. अगर ऐसा होता है तब भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की हालत मई 2013 के ‘टेपर टैंट्रम’ कांड वाली हो जाएगी जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपनी ‘क्वांटिटेटिव ईजिंग पॉलिसी’ को संकुचित करने का संकेत दे दिया था. इसके कारण भारत और दूसरी उभरती अर्थव्यवस्थाओं से पूंजी बाहर जाने लगी और उनकी मुद्राओं में गिरावट आ गई थी.
जमा कोश से बिक्री करके विनिमय दर का बचाव करने से सटोरियों को मौका मिल जाता है. जब लोग देखते हैं कि आरबीआइ जमा कोश से बिक्री कर रहा है तब वे यह उम्मीद करने लगते हैं कि कोश बेहद निचले स्तर पर पहुंच जाएगा और केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप रोकने को मजबूर हो जाएगा और तब मुद्रा कमजोर पड़ जाएगी. ऐसा होने से पहले ही विदेशी और देसी निवेशक पैसे निकालने लगते हैं. मुद्रा पर उनकी सट्टेबाजी रुक जाती है और मुद्रा का मूल्य तेजी से गिरने लगता है.
इसे रोकने के लिए आरबीआइ ने मुद्रा नीति सख्त की, सिस्टम से तरलता पर लगाम लगा दी और पूंजी पर नियंत्रण लगा दिया. उसने जमा कोश का बहुत छोटा हिस्सा इस्तेमाल किया. मई 2013 में उसका विदेशी मुद्रा भंडार करीब 288 अरब डॉलर का था. मई-सितंबर 2013 के बीच उसने 22 अरब डॉलर बेच दिए. इसके बावजूद रुपये का मूल्य मई 2013 में 56.5 से सितंबर 2013 में 62.8 हो गया.
केंद्रीय बैंक के जमा कोश से व्यवसाय जगत को यह भरोसा होता है कि रुपया तेजी से कमजोर नहीं हो जाएगा. वह मानता है कि मुद्रा में बड़ी उथलपुथल होने पर आरबीआइ जमा कोश का इस्तेमाल करेगा. यह इन फ़र्मों को अपनी बैलेंसशीट में डॉलर को छुपाने से रोकता है. इसके चलते एक ऐसा दुष्चक्र बन जाता है कि आरबीआइ जमा कोश जितना बढ़ाता है, इन फ़र्मों का भरोसा इतना बढ़ता है कि वे खुला कारोबार करते हैं और वित्तीय हानि से बचाव की लागत से बचते हैं, और तब आरबीआइ को जमा कोश बढ़ाने का ज्यादा औचित्य हासिल हो जाता है.