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परिवेश और प्रवृत्तियाँ

परिवेश और प्रवृत्तियाँ
नई कविता काव्य प्रवृत्ति के प्रचार-प्रसार में प्रतीक , दृष्टिकोण , कल्पना , धर्मयुग पत्रिकाओं का योगदान रहा हैं ।

परिवेश और प्रवृत्तियाँ

प्रयोगवादी कविताओं ने आगे चलकर नई कविताओं का रूप ले लिया। नवीन कविताओं के प्रमुख विषय चमत्कार और जीवन यथार्थ थे। नई कविताएँ परिस्थितियों की उपज हैं। इनका लेखन स्वतंत्रता के बाद किया गया था। नवीन भावबोध, नए मूल्य, शिल्प विधान आदि नई कविताओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं। प्रथम विश्व युद्ध के बाद पहली परिवेश और प्रवृत्तियाँ बार मनुष्य की असहायता, विवशता और निरूपायता सामने आई। साथ ही मनुष्य ने अपने अस्तित्व का संकट भी अनुभव किया। हिंदी के ऐतिहासिक युग नई कविता में मानव का दार्शनिक रूप वादों से परे है और एकांत में प्रगट होता है। नई कविता युग एक प्रतिष्ठित युग है। साथ ही यह प्रत्येक परिस्थिति में अपने अस्तित्व को बनाए रखने वाला युग है। नई कविताओं में लघु मानव और उसके संघर्ष का अनूठा वर्णन किया गया है। नई कविता के कवि दो परिवेशों को लेकर लिखने वाले कवि हैं। ग्रामीण और शहरी दोनों परिवेशों का नई कविताओं में वर्णन किया गया है। इसके अलावा कुंठा, असमानता, घुटन और कुरूपता का वर्णन किया गया है। गिरिजाकुमार माथुर, धर्मवीर भारती, शमशेर बहादुर सिंह आदि शहरी परिवेश के कवि हैं। इनके अलावा भवानीप्रसाद मिश्र, केदारनाथ सिंह, नागार्जुन आदि ग्रामीण परिवेश के कवि हैं। नई कविता को वस्तु की तुलना में शिल्प की नवीनता ने ज्यादा गंभीर चुनौती दी है। नए शिल्प अपनाना तथा परंपरागत शिल्प को तोड़ना कठिन कार्य था। इसलिए नई कविता युग में छोटी-छोटी कविताओं की प्रचुरता रही। प्रभावशीलता की दृष्टि से ये छोटी-छोटी रचनाएँ भी बड़े-बड़े वृत्तांतों को सफलता के साथ वर्णित करती हैं। नई कविता में व्यंग्यों की प्रधानता रही है। इसका कारण तत्कालीन समाज में घुटन, आक्रोश और नैराश्य के भावों का स्वाभाविक रूप से उपस्थित रहना है।

कवि एवं उनकी रचनाएँ

नई कविता के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. भवानी प्रसाद मिश्र– सन्नाटा, गीत फरोश, चकित है दुःख
2. शमशेर बहादुर सिंह– इतने पास अपने, बात बोलेगी हम नहीं, काल तुझ से होड़ है मेरी
3. कुंवर नारायण– आमने-सामने, कोई दूसरा नहीं, चक्रव्यूह
4. दुष्यंत कुमार– सूर्य का स्वागत, साये में धूप, आवाजों के घेरे
5. जगदीश गुप्त– नाव के पाँव, शब्द दंश, बोधि वृक्ष, शम्बूक
6. रघुवीर सहाय– हँसो-हँसो जल्दी हँसो, आत्महत्या के विरुद्ध
7. श्रीकांत वर्मा– दिनारम्भ, भटका मेघ, मगध, माया दर्पण
8. नरेश मेहता– वनपाँखी सुनो, बोलने दो चीड़ को, उत्सव।

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परिवेश और प्रवृत्तियाँ

Year: Feb, 2019
Volume: 16 / Issue: 2
Pages: 1486 - 1491 (6)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/293167
Published On: Feb, 2019

स्वातंत्र्योत्तर हिंदी काव्यः सामाजिक एवं साहित्यिक सरोकार | Original Article

Rajendra Singh*, in Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education | Multidisciplinary Academic Research

नयी कविता : उद्भव, विकास और प्रवृत्तियाँ

हिंदी साहित्य कोश के अनुसार, नयी कविता मूलत: 1953 ई0 में ‘नये पत्ते’ के प्रकाशन के साथ विकसित हुई और जगदीश गुप्त तथा रामस्वरूप चतुर्वेदी के संपादन में प्रकाशित होनेवाले संकलन ‘नयी कविता (1954) में सर्वप्रथम अपने समस्त संभावित प्रतिमानों के साथ प्रकाश में आयो। इस काल की कविता का ‘नयो कविता’ नाम कई कारणों से पड़ा। प्रथम परिवेश और प्रवृत्तियाँ तो यह कि नयी कविता के कवि विषय-वस्तु और शिल्प की दृष्टि से अपने पूर्ववर्ती कवियों के साथ तो परिवेश और प्रवृत्तियाँ थे, किंतु वे स्वयं यह अनुभव कर रहे थे कि ‘दूसरा सप्तक’ के कवियों द्वारा जहाँ जिस सीमा तक समस्त काव्य-चेतना पहुँच चुकी थी, नयी कविता उससे आगे की ओर बढ़ चुकी थी।

नयी कविता आज की मानव विशिष्टता से उद्भूत उस लघु मानव के लघु परिवेश की अभिव्यक्ति है, जो एक ओर आज की समस्त तिक्तताओं के बीच वह अपने व्यक्त्वि को भी सुरक्षित रखना चाहता है। वह विशाल मानव-प्रवाह में बहने के साथ-साथ असितत्व के यथार्थ को भी स्थापित करना चाहता है, उसके दायित्व का निर्वाह भी करना चाहता है।

बच्चों को चाहिए ढेर सारी किताबें

पंकज चतुर्वेदी

बाल मन और जिज्ञासा एक-दूसरे के पूरक शब्द ही हैं। वहीं जिज्ञासा का सीधा संबंध कौतुहल परिवेश और प्रवृत्तियाँ से है। उम्र बढ़ने के साथ ही अपने परिवेश की हर गुत्थी को सुलझाने की जुगत लगाना बाल्यावस्था की मूल-प्रवृत्ति है। भौतिक सुखों व बाजारवाद की बेतहाशा दौड़ के बीच दूषित हो रहे सामाजिक परिवेश और बच्चों की नैसर्गिक जिज्ञासु प्रवृत्ति पर बस्ते के बोझ के कारण एक बोझिल-सा माहौल पैदा हो गया है। ऐसे में बच्चों को दुनिया की रोचक जानकारी सही तरीके से देना राहत भरा कदम होता है। पुस्तकें इसका सहज, सर्वसुलभ और सटीक माध्यम हैं। भले ही शहरी बच्चों का एक वर्ग इंटरनेट व अन्य माध्यमों से ज्ञानवान बन रहा है, पर आज भी देश के आम बच्चे को ज्ञान, मनोरंजन, और भावी चुनौतियों का मुकाबला करने के काबिल बनाने के लिए जरूरी पुस्तकों की बेहद कमी है।

प्रयोगवाद और नई कविता की प्रवृत्तियाँ

इनका जन्म उत्तरप्रदेश के जिला देवरिया के कुशीनगर में हुआ था ।इन्होंने 1943 से 1946 तक ब्रिटिश सेना में नौकरी की । इन्होंने अज्ञेय के रुप में काव्य रचना की ।

इन्हें परिवेश और प्रवृत्तियाँ कवि , कथाकार , निबन्धकार , सम्पादक और अध्यापक के रुप में जाना जाता है । पत्रकारिता के क्षेत्र में दिनमान और प्रतीक के संपादकरुप में ख्याति प्राप्त हुई है । तार सप्तक , दूसरा सप्तक , तीसरा सप्तक , चैथा सप्तक और रूपांबरा इनके द्वारा संपादित काव्य संकलन हैं ।

आंगन के पार द्वार काव्य संग्रह तीन खंडो मे विभक्त है - प्रथम अंतः सलिला , द्वतीय चन्द्रकांतशिला और तृतीय असाध्य वीणा

एक चीड़ का खाका में अज्ञेय ने जापनी काव्य का नमूना प्रस्तुत किया है , जापनी भाषा में ऐसे मुक्तकों को हाइकू कहते हैं ।

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