किसी देश की मुद्रा क्या है

मुद्रा फ्यूचर्स क्या है?
भारत में मुद्रा फ्यूचर्स
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मुद्रा फ्यूचर्स
हर देश में एक मुद्रा होती है , और अन्य मुद्राओं के सापेक्ष इसका मूल्य हर समय बदलता रहता है। किसी देश की मुद्रा का मूल्य कई चीजों पर निर्भर करती है – अर्थव्यवस्था की स्थिति , इसके विदेशी मुद्रा भंडार , आपूर्ति और मांग , केंद्रीय बैंक नीतियां , आदि। एक स्थिर और मजबूत मुद्रा निवेशकों को आकर्षित करती है। ऐसा मुद्रा फ्यूचर्स के माध्यम से किया जा सकता है।
तो , यह कैसे काम करता है ? अमेरिकी डॉलर की तरह एक मुद्रा को अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ताकत के कारण और निवेशकों के इसमें विश्वास के कारण मजबूत माना जाता है। निवेशक , इसलिए , अन्य मुद्रा के विरुद्ध डॉलर होल्ड करना अधिक पसंद करते हैं , और मांग और आपूर्ति के नियमों के अनुसार , मांग अधिक है , तो कीमत अधिक है।
किसी देश की मुद्रा की तुलना में अन्य मुद्रा का मूल्य उन कारकों पर निर्भर करेगा जिनका उल्लेख हमने ऊपर किया है , और ये घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कारकों के कारण बदलते रहते हैं। उदाहरण के लिए , अमेरिका बनाम यूरोप में उच्च वृद्धि डॉलर को यूरो की तुलना में सस्ता करने का नेतृत्व करेगी। तो यूरो की प्रत्येक इकाई अधिक डॉलर लाएगी।
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हालाँकि विदेशी मुद्रा बाजार दुनिया में सबसे ज्यादा ट्रेड होने वाला बाजार है, खुदरा सेक्टर में इक्विटी और नियत आय बाजार की तुलना में इसकी पहुँच काफी फीकी है। इसका एक बड़ा कारण निवेश समुदाय में विदेशी मुद्रा विनिमय के बारे में जागरूकता की कमी, साथ ही साथ विदेशी मुद्रा में परिवर्तन के कारण और तरीके की समझ की कमी है। NYSE या CME जैसे वास्तविक सेंट्रल एक्सचेंच की कमी इस बाजार के रहस्य में इजाफ़ा करती है। संरचना की यही कमी विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार को 24 घंटे परिचालित होने में सक्षम बनाती है, जहाँ कारोबारी दिन न्यूजीलैंड से शुरू होता है और अलग-अलग टाइम ज़ोन में जारी रहता है।
पारंपरिक रूप से, विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार बैंक समुदाय तक सीमित थी, जो व्यावसायिक, हेजिंग या सट्टा प्रयोजनों से काफी मात्रा में मुद्राओं को ट्रेड करते थे। USG जैसी कंपनियों की स्थापना ने विदेशी मुद्रा के दरवाजे फ़ंड और मनी मैनेजर्स, साथ ही साथ व्यक्तिगत रिटेल कारोबारी के लिए खोल दिया है। बाजार का यह क्षेत्र पिछले कई सालों में बहुत तेजी से विकसित हुआ है।
इन देशों में इस्तेमाल कर सकते हैं भारत की करेंसी
भारतीय मुद्रा को जिम्बाब्वे ने घोषित किया है लीगल टेंडर मनी।
- कई अर्थव्यवस्थाएं अपने देश में करती हैं भारतीय मुद्रा का इस्तेमाल।
- जिम्बाब्वे ने भारतीय रुपये को अपना लीगल टेंडर मनी घोषित किया है।भारत के व्यापारी किसी देश की मुद्रा क्या है को एक भारतीय रुपये के बदले ज्यादा नेपाली मुद्रा मिलती है।
- भारत के व्यापारी को एक भारतीय रुपये के बदले ज्यादा नेपाली मुद्रा मिलती है।
2. नेपाल
नेपाल एक ऐसा देश है जिसे भारत का ही एक अभिन्न अंग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। नेपाल ने दिसम्बर 2018 से 100 रुपये से बड़े मूल्य के भारतीय नोटों को किसी देश की मुद्रा क्या है बंद कर दिया है लेकिन 200 रुपये से कम के नोट बेधड़क स्वीकार किये जा रहे हैं। जब 2016 में भारत ने नोटबंदी की थी तब वहां पर किसी देश की मुद्रा क्या है लगभग 9.48 अरब रुपये मूल्य के भारतीय नोट इस्तेमाल किए जा रहे थे। भारत के व्यापारी नेपाल से व्यापार करने को उत्सुक रहते हैं क्योंकि भारत के व्यापारी को एक भारतीय रुपये के बदले ज्यादा नेपाली मुद्रा मिलती है।
किन देशों में भारतीय करेंसी मान्य है और क्यों?
क्या आप जानते हैं कि दुनिया का लगभग 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है? दुनिया भर के लगभग 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमेरिका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है. यही कारण है कि डॉलर को 'अंतरराष्ट्रीय व्यापार करेंसी' भी कहा जाता है.
डॉलर को पूरी दुनिया में इंटरनेशनल करेंसी कहा जाता है. कोई भी देश डॉलर में भुगतान लेने को तैयार हो जाता है. लेकिन क्या इस तरह का सम्मान भारत की मुद्रा रुपया को मिलता है. जी हाँ, भले ही ‘रुपये’ को डॉलर जितनी आसानी से इंटरनेशनल ट्रेड में स्वीकार ना किया जाता हो लेकिन फिर भी कुछ ऐसे देश हैं जो कि भारत की करेंसी में आसानी से पेमेंट स्वीकार करते हैं. आइये इस लेख में इन सभी देशों के नाम जानते हैं.
हाइलाइट्स
अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करने का कारनामा हाल में ही चीन दो बार कर चुका है.
एक बार 2015 में चीन ने डॉलर के मुकबाले अपने युआन की कीमत घटाकर 6.22 कर दी थी.
साल 2019 में फिर चीन ने डॉलर के मुकाबले युआन की कीमत घटाकर 6.99 तय कर दी.
नई दिल्ली. अमूमन किसी देश की करेंसी के कमजोर होने को उसकी बिखरती अर्थव्यवस्था का सबूत माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ देश जानबूझकर अपनी मुद्रा को कमजोर बनाते हैं. एक बारगी तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल होता है कि जहां दुनियाभर के देश अपनी मुद्रा को मजबूत बनाने की जुगत में लगे रहते हैं, वहीं कोई देश क्यों अपनी करेंसी को कमजोर बनाएगा, लेकिन यही सवाल जब बाजार और कमोडिटी एक्सपर्ट से पूछा तो जवाब चौंकाने वाले थे.
आईआईएफएल सिक्योरिटीज के कमोडिटी रिसर्च हेड अनुज गुप्ता का कहना है कि ज्यादातर ऐसे देश अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर बनाते हैं, जिन्हें निर्यात के मोर्चे पर लाभ लेना होता है. यानी अगर किसी देश की करेंसी कमजोर होती है, तो उसी अनुपात में उसका निर्यात सस्ता हो जाता है और उद्योगों के पास ज्यादा उत्पादन के मौके बनते हैं. दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर ग्लोबल लेनदेन डॉलर में होता है और जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो उसका उत्पादन भी डॉलर के मुकाबले सस्ता हो जाता है और ग्लोबल मार्केट में उसकी मांग बढ़ जाती है.