बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं

भारत में माइक्रोफाइनेंस संस्थायें
माइक्रोफाइनेंस संस्थायें उन कंपनियों को कहा जाता है जो कि निम्न आय वर्ग के लोगों को अपना व्यवसाय लगाने के लिए सस्ती व्याज दरों पर ऋण उपलब्ध करातीं हैं I भारतीय रिज़र्व बैंक उन कंपनियों को माइक्रोफाइनेंस संस्थायें कहती है जो कि कंपनी एक्ट 1956 के अंतर्गत रजिस्टर्ड है और जिनकी कुल संपत्ति 5 करोड़ से कम है I
माइक्रोफाइनेंस कंपनियां कम आय वाले ग्राहकों को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ऋण उपलब्ध कराती है बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं ताकि वे स्व-रोजगार के कार्यों को कर सकें| ये संस्थाएं घरेलु क्षेत्रों से छोटी-छोटी बचतों को जमा करके बड़े निवेश कर्ताओं को भी ऋण की आपूर्ति करतीं हैं I जिससे देश में बचत क्रियाओं को बढ़ावा मिलता है और देश में निवेश का माहौल पैदा होता है I
माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र की पिछले कुछ दशकों में तेज़ी से वृद्धि हुई है। नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस को 1976 में ग्रामीण बैंक, बांग्लादेश की स्थापना के साथ आधुनिक एमएफआई की नींव रखने का श्रेय जाता है। आज यह एक जीवंत उद्योग के रूप में विकसित हुआ है जो व्यापार प्रतिमानों के कई रूपों को दर्शाता है | भारत में माइक्रोफाइनेंस संस्थाएं (एमएफआई) गैर सरकारी संगठनों (समाज या ट्रस्टों के रूप में पंजीकृत), धारा 25 कंपनियों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के रूप में मौजूद हैं। वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आरआरबी), सहकारी समितियाँ और अन्य बड़े ऋणदाता एमएफआई के लिए पुनर्वित्त सुविधा प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।
माइक्रोफाइनेंस की मुख्य विशेषताएं:-
• उधार लेने वालों की अधिकत्तम संख्या कम आय वर्ग से होती है
• छोटी राशि के ऋण देना - सूक्ष्म ऋण
• छोटी अवधि के ऋण
• बिना किसी चीज को गिरवी रखे ऋण देना
• पुनर्भुगतान की अधिक आवृत्ति
• ऋण को आम तौर पर उत्पादन क्रियाओं के लिए देना
माइक्रोफाइनेंस के लाभ:-
विश्व बैंक द्वारा हाल ही में किये गए अनुसंधान के अनुसार, भारत दुनिया के लगभग एक तिहाई गरीबों ( जीने के लिए प्रति दिन के एक डॉलर के बराबर ) का घर है। हालांकि भारत में कई केंद्र सरकार और राज्य सरकार के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम वर्तमान में सक्रिय हैं, माइक्रोफाइनेंस वित्तीय समावेशन में एक बड़ा योगदान अदा करता है। पिछले कुछ दशकों में इसने गरीबी उन्मूलन में उल्लेखनीय मदद की है। रिपोर्ट बताती है कि जिन लोगों ने लघु वित्त लिया है वे अपनी आय और जीवन स्तर को बढ़ाने में सक्षम हो पाए हैं |
भारतीय आबादी की लगभग आधी आबादी का अभी भी एक बचत बैंक खाता नहीं है और वे सभी बैंकिंग सेवाओं से वंचित हैं। गरीब को भी अपनी ज़रूरतें जैसे खपत, परिसंपत्तियों के निर्माण और संकट से बचाव के लिए वित्तीय सेवाओं की जरूरत होती है। माइक्रोफाइनेंस संस्थान बैंकों के लिए एक पूरक के बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं रूप में कार्य करते हैं और कुछ अर्थों में ये एक बेहतर विकल्प भी है। ये संस्थान न केवल लघु ऋण का प्रस्ताव देते हैं अपितु यह बचत, बीमा, प्रेषण जैसी अन्य वित्तीय सुविधाएं तथा व्यक्तिगत परामर्श, प्रशिक्षण तथा अपने व्यवसाय को खुद से तथा सबसे महत्वपूर्ण बात एक सुविधाजनक तरीके से शुरू करने जैसी गैर वित्तीय सेवायें प्रदान करते हैं |
माइक्रो फाइनेंस पर सच्चाई:
ये संस्थान ऋण लेने वाले को ऋण आसान शर्तों पर उपलब्ध करा देते हैं I ज्यादातर मामलों में ऋण लेने वाले को सुविधानुसार पुनः भुगतान की सुविधा प्राप्त होती हैं | लेकिन इन सबकी एक कीमत चुकानी पड़ती है तथा इन संस्थानों द्वारा वसूली गई ब्याज दर वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में काफी अधिक होती है तथा ये व्यापक रूप से 10 से 30 प्रतिशत तक अधिक दर से ऋण देते हैं और जबरन बसूली जैसे कार्यों में भी लिप्त होते है I
माइक्रो फाइनेंस की प्रणाली:-
भारत में माइक्रोफाइनेंस को दो प्रणाली के माध्यम से संचालित किया जाता है:
1. स्वयं सहायता समूह - बैंक लिंकेज कार्यक्रम (SBLP)
2. माइक्रो फाइनेंस संस्थान(MFIs)
स्वयं सहायता समूह - बैंक लिंकेज कार्यक्रम:-
यह बैंक के नेतृत्व वाली माइक्रोफाइनेंस प्रणाली है जिसे 1992 में NABARD द्वारा शुरू किया गया | स्वयं सहायता समूह (SHG) मॉडल के तहत सदस्यों को, आमतौर पर गाँव में महिलाओं को 10-15 का समूह बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है | SHG के सदस्य समूह में समय-समय में अपनी बचत का योगदान देते रहते हैं और इस बचत के योगदान से समूह के सदस्यों को लघु ऋण दिए जाते हैं | बाद की अवधि में इन स्वयं सहायता समूहों को आम तौर पर आय सृजन के प्रयोजन के लिए बैंक ऋण उपलब्ध कराए जाते हैं | समूह के सदस्य जब भी समूह में नई बचत एकत्रित करनी होती है,सदस्यों से पिछले ऋण की वसूली करने होती है, तथा नए ऋण के वितरण के लिए भी समय समय पर मिलते रहते हैं |
एमएफआई पर विवाद और निपटान:-
पिछले पंच सालों में MFIs ने काफी तरक्की की है I आंध्र प्रदेश के कुछ जिलों में इन संस्थानों में कर्ज उगाही को लेकर की गयी कार्यवाही के कारण सरकार को मजबूरन इन संस्थानों के लिए भी कुछ रेगुलेटरी नियम बनाने पड़े हैं I इसी क्रम में RBI ने इन संस्थानों की निगरानी के लिए जिसे मालेगाम समिति गठित की है I
इस समिति का उद्देश्य प्राथमिक ग्राहकों की शिकायतों जिसके कारण संकट खड़ा हुआ हो, जिसमें बलपूर्वक उगाही का कार्य, अत्याधिक ब्याज दरें, जैसे मुद्दों को सुनना था |मालेगाम समिति ने जनवरी 2011 में उनकी सिफारिशें सरकार को सौंप दी थी ।
भारत में शीर्ष 10 माइक्रोफाइनेंस कंपनियाँ निम्नानुसार है ((वर्णानुक्रम):
1. अन्नपूर्णा माइक्रोफाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड
2. आरोहण फाइनेंशियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड
3. आशिर्वाद माइक्रोफाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड
4. बंधन फाइनेंशियल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड
5. बीएसएस माइक्रोफाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड
6. कैश्पोर माइक्रो क्रेडिट
7. दिशा माइक्रोफिन प्राइवेट लिमिटेड
8. इक्विटास माइक्रो फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड
9.ESAF माइक्रोफाइनेंस और निवेश प्राइवेट लिमिटेड
10. फ्यूजन माइक्रोफाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड
बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं
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देखो, सुनो और जीओ 1 परमेश्वर के साथ आरंभ - चकमा: बांग्लादेश
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वीर चक्र से सम्मानित की विधवा को 46 साल बाद मिला इंसाफ
वीर चक्र से सम्मानित शहीद की विधवा को 46 साल के बाद न्याय मिला है। आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल (एएफटी) ने उसे वीर चक्र से सम्मानित की विधवा को मिलने वाली सभी वित्तीय सुविधाएं बहाल करने और बकाए का भुगतान करने का आदेश दिया है।
रक्षा मंत्रालय की खिंचाई करते हुए उस नीति को भी खारिज कर दिया है जिसके अनुसार शहीद की विधवा अगर उसके भाई के साथ शादी नहीं करती है तो उसकी सारी सुविधाएं रोक दी जाएंगी। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
जस्टिस वीके शाली और लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिंह की पीठ ने कहा कि एक तरफ तो राष्ट्रपति शहीद की विधवा को उसकी पति की वीरता के लिए उसे पुरस्कार देते हैं और दूसरी तरफ उसको मिलने वाली वित्तीय सुविधाएं रोककर उसका अपमान किया जाता है।
यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है जिसके तहत हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। इसके मद्देनजर सरकार की वह नीति खारिज की जाती है जिसमें वीरता पुरस्कार विजेता की विधवा को शादी की वजह से वित्तीय सुविधाओं को महरूम कर दिया जाता है।
जनक आनंद का केस लड़ने वाले वकील मेजर एसएस पांडे ने कहा कि इस मामले में सेना का नियम विचित्र है। शहीद की विधवा की शादी की सूरत में उसे फैमिली पेंशन तो मिलती रहती है लेकिन वीरता पुरस्कार से जुड़ी वित्तीय सुविधाएं बंद कर दी जाती हैं, लेकिन अब एएफटी के आदेश के बाद जनक जैसी अन्य महिलाओं को भी राहत मिलेगी।
दस फीसदी ब्याज के साथ मिलेगा बकाया
ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि शहीद की विधवा को वीर चक्र विजेता को मिलने वाली सभी वित्तीय बकाया 10 फीसदी ब्याज के साथ वापस लौटाया जाए। बकाए का हिसाब उस दिन से लगाया जाएगा जिस दिन से वह इन सुविधाओं की हकदार थी।
क्या है मामला
कैप्टन एसके सहगल पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शहीद हो गए थे। अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान का प्रदर्शन करने के लिए 1972 में उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया।
दो साल बाद उनकी विधवा जनक ने मेजर दीपक आनंद से विवाह कर लिया। इसके बाद सरकार ने वीरता पुरस्कार से जुड़ी उनकी वित्तीय सुविधाएं रोक दीं। इसके खिलाफ उन्होंने याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि बार-बार शिकायत करने के बावजूद सैन्य अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंगी तो उन्होंने ट्र्ब्यिूनल का दरवाजा खटखटाया।
वीर चक्र से सम्मानित शहीद की विधवा को 46 साल के बाद न्याय मिला है। आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल (एएफटी) ने उसे वीर चक्र से सम्मानित की विधवा को मिलने वाली सभी वित्तीय सुविधाएं बहाल करने और बकाए का भुगतान करने का आदेश दिया है।
रक्षा मंत्रालय की खिंचाई करते हुए उस नीति को भी खारिज कर दिया है जिसके अनुसार शहीद की विधवा अगर उसके भाई के साथ शादी नहीं करती है तो उसकी सारी सुविधाएं रोक दी जाएंगी। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
जस्टिस वीके शाली और लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिंह की पीठ ने कहा कि एक तरफ तो राष्ट्रपति शहीद की विधवा को उसकी पति की वीरता के लिए उसे पुरस्कार देते हैं और दूसरी तरफ उसको मिलने वाली वित्तीय सुविधाएं रोककर उसका अपमान किया जाता है।
यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है जिसके तहत हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। इसके मद्देनजर सरकार की वह नीति खारिज की जाती है जिसमें वीरता पुरस्कार विजेता की विधवा को शादी की वजह से वित्तीय सुविधाओं को महरूम कर दिया जाता है।
एएफटी के आदेश के बाद जनक जैसी अन्य महिलाओं को भी राहत मिलेगी
जनक आनंद का केस लड़ने वाले वकील मेजर एसएस पांडे ने कहा कि इस मामले में सेना का नियम विचित्र है। शहीद की विधवा की शादी की सूरत में उसे फैमिली पेंशन तो मिलती रहती है लेकिन वीरता पुरस्कार से जुड़ी वित्तीय सुविधाएं बंद कर दी जाती हैं, लेकिन अब एएफटी के आदेश के बाद जनक जैसी अन्य महिलाओं को भी राहत मिलेगी।
दस फीसदी ब्याज के साथ मिलेगा बकाया
ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि शहीद की विधवा को वीर चक्र विजेता को मिलने वाली सभी वित्तीय बकाया 10 फीसदी ब्याज के साथ वापस लौटाया जाए। बकाए का हिसाब उस दिन से लगाया जाएगा जिस दिन से वह इन सुविधाओं की हकदार थी।
क्या है मामला
कैप्टन एसके सहगल पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शहीद हो गए थे। अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान का प्रदर्शन करने के लिए 1972 में उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया।
दो साल बाद उनकी विधवा जनक ने मेजर दीपक आनंद से विवाह कर लिया। इसके बाद सरकार ने वीरता पुरस्कार से जुड़ी उनकी वित्तीय सुविधाएं रोक दीं। इसके खिलाफ उन्होंने याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि बार-बार शिकायत करने के बावजूद सैन्य अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंगी तो उन्होंने ट्र्ब्यिूनल का दरवाजा खटखटाया।
वीर चक्र से सम्मानित की विधवा को 46 साल बाद मिला इंसाफ
वीर चक्र से सम्मानित शहीद की विधवा को 46 साल के बाद न्याय मिला है। आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल (एएफटी) ने उसे वीर चक्र से सम्मानित की विधवा को मिलने वाली सभी वित्तीय सुविधाएं बहाल करने और बकाए का भुगतान करने का आदेश दिया है।
रक्षा मंत्रालय की खिंचाई करते हुए उस नीति को भी खारिज कर दिया है जिसके अनुसार शहीद की विधवा अगर उसके भाई के साथ शादी नहीं करती है तो उसकी सारी सुविधाएं रोक दी जाएंगी। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
जस्टिस वीके शाली और लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिंह की पीठ ने कहा कि एक तरफ तो राष्ट्रपति शहीद की विधवा को उसकी पति की वीरता के लिए उसे पुरस्कार देते हैं और दूसरी तरफ उसको मिलने वाली वित्तीय सुविधाएं रोककर उसका अपमान किया जाता है।
यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है जिसके तहत हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। इसके मद्देनजर सरकार की वह नीति खारिज की जाती है जिसमें वीरता पुरस्कार विजेता की विधवा को शादी की वजह से वित्तीय सुविधाओं को महरूम कर दिया जाता है।
जनक आनंद का केस लड़ने बांग्लादेश में वित्तीय नियम क्या हैं वाले वकील मेजर एसएस पांडे ने कहा कि इस मामले में सेना का नियम विचित्र है। शहीद की विधवा की शादी की सूरत में उसे फैमिली पेंशन तो मिलती रहती है लेकिन वीरता पुरस्कार से जुड़ी वित्तीय सुविधाएं बंद कर दी जाती हैं, लेकिन अब एएफटी के आदेश के बाद जनक जैसी अन्य महिलाओं को भी राहत मिलेगी।
दस फीसदी ब्याज के साथ मिलेगा बकाया
ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि शहीद की विधवा को वीर चक्र विजेता को मिलने वाली सभी वित्तीय बकाया 10 फीसदी ब्याज के साथ वापस लौटाया जाए। बकाए का हिसाब उस दिन से लगाया जाएगा जिस दिन से वह इन सुविधाओं की हकदार थी।
क्या है मामला
कैप्टन एसके सहगल पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शहीद हो गए थे। अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान का प्रदर्शन करने के लिए 1972 में उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया।
दो साल बाद उनकी विधवा जनक ने मेजर दीपक आनंद से विवाह कर लिया। इसके बाद सरकार ने वीरता पुरस्कार से जुड़ी उनकी वित्तीय सुविधाएं रोक दीं। इसके खिलाफ उन्होंने याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि बार-बार शिकायत करने के बावजूद सैन्य अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंगी तो उन्होंने ट्र्ब्यिूनल का दरवाजा खटखटाया।
वीर चक्र से सम्मानित शहीद की विधवा को 46 साल के बाद न्याय मिला है। आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल (एएफटी) ने उसे वीर चक्र से सम्मानित की विधवा को मिलने वाली सभी वित्तीय सुविधाएं बहाल करने और बकाए का भुगतान करने का आदेश दिया है।
रक्षा मंत्रालय की खिंचाई करते हुए उस नीति को भी खारिज कर दिया है जिसके अनुसार शहीद की विधवा अगर उसके भाई के साथ शादी नहीं करती है तो उसकी सारी सुविधाएं रोक दी जाएंगी। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
जस्टिस वीके शाली और लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिंह की पीठ ने कहा कि एक तरफ तो राष्ट्रपति शहीद की विधवा को उसकी पति की वीरता के लिए उसे पुरस्कार देते हैं और दूसरी तरफ उसको मिलने वाली वित्तीय सुविधाएं रोककर उसका अपमान किया जाता है।
यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है जिसके तहत हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। इसके मद्देनजर सरकार की वह नीति खारिज की जाती है जिसमें वीरता पुरस्कार विजेता की विधवा को शादी की वजह से वित्तीय सुविधाओं को महरूम कर दिया जाता है।
एएफटी के आदेश के बाद जनक जैसी अन्य महिलाओं को भी राहत मिलेगी
जनक आनंद का केस लड़ने वाले वकील मेजर एसएस पांडे ने कहा कि इस मामले में सेना का नियम विचित्र है। शहीद की विधवा की शादी की सूरत में उसे फैमिली पेंशन तो मिलती रहती है लेकिन वीरता पुरस्कार से जुड़ी वित्तीय सुविधाएं बंद कर दी जाती हैं, लेकिन अब एएफटी के आदेश के बाद जनक जैसी अन्य महिलाओं को भी राहत मिलेगी।
दस फीसदी ब्याज के साथ मिलेगा बकाया
ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया है कि शहीद की विधवा को वीर चक्र विजेता को मिलने वाली सभी वित्तीय बकाया 10 फीसदी ब्याज के साथ वापस लौटाया जाए। बकाए का हिसाब उस दिन से लगाया जाएगा जिस दिन से वह इन सुविधाओं की हकदार थी।
क्या है मामला
कैप्टन एसके सहगल पाकिस्तान के खिलाफ 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शहीद हो गए थे। अदम्य साहस और सर्वोच्च बलिदान का प्रदर्शन करने के लिए 1972 में उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा गया।
दो साल बाद उनकी विधवा जनक ने मेजर दीपक आनंद से विवाह कर लिया। इसके बाद सरकार ने वीरता पुरस्कार से जुड़ी उनकी वित्तीय सुविधाएं रोक दीं। इसके खिलाफ उन्होंने याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि बार-बार शिकायत करने के बावजूद सैन्य अधिकारियों के कान पर जूं नहीं रेंगी तो उन्होंने ट्र्ब्यिूनल का दरवाजा खटखटाया।