कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ

Last updated on Oct 31, 2022
कंपनी का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं
company meaning in hindi;सामान्यतः कम्पनी से आशय, लाभ के लिए निर्मित व्यक्तियों की एक ऐच्छिक संस्था है जिसकी पूँजी हस्तान्तरण योग्य अंशो मे विभक्त होती है। इन अंशों के स्वामियों (अंशधारियों) का दायित्व सामान्यतया सीमित होता है। इनेक संगठन का एक सामान्य वैधानिक उद्देश्य होता है तथा जिसका निर्माण एवं समापन तथा अन्य क्रायवाहियाँ अधिनियमानुसार होती है। इसकी प्रबंध व संचालन व्यवस्था प्रतिनिधि (संचालकों द्वारा) व्यवस्था पर आधारित होती है।
आगे जानेंगे कम्पनी की परिभाषा और कम्पनी की विशेषताएं।
डाॅ. विलियम आर. स्प्रीगल " निगम राज्य की एक रचना है जिनका अस्तित्व उन व्यक्तियों से पृथक होता है जो कि उसके अंशों कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ अथवा अन्य प्रतिभूतियों के स्वामी होते है।
प्रो. एच. एल. हैने के अनुसार " एक संयुक्त रकन्ध प्रमण्डल लाभ के लिए निर्मित व्यक्तियों का एक ऐच्छिक संघ है, जिसकी पूँजी हस्तान्तरणीय अंशों मे विभक्त होती है, जिसकी सदस्यता की शर्त, उसका स्वामित्व है।
किम्बाल के अनुसार " निगम, प्रकृति से, किसी कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ विशेष उद्देश्य के लिए कानून द्वारा निर्मित अथवा अधिकृत कृत्रिम व्यक्ति है। इसे केवल कानून द्वारा प्रदत्त अधिकार और सुविधाएं प्राप्त होती है।
न्यायाधीश जेम्स के अनुसार " प्रमण्डल, एक सामान्य उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संगठित व्यक्तियों का एक ऐच्छिक संघ है। "
कंपनी की विशेषताएं या लक्षण (company ki visheshta)
1. ऐच्छिक संघ
कम्पनी व्यक्तियों का ऐच्छिक संघ है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बनायी जाती है। कम्पनी को जो लाभ होता है, उसका कुछ भाग लाभांश के रूप मे निश्चित नियमों के अंतर्गत अंशधारियों मे बाँट दिया जाता है। अंशधारी कम्पनी के स्वामी होते है, ये लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से कम्पनी मे अंशों के रूप मे अपना धन लगाते है। इस प्रकार कम्पनी लाभ कमाने के उद्देश्य से बनाया गया व्यक्तियों का ऐच्छिक संघ है।
2. वैधानिक कृत्रिम अस्तित्व
कम्पनी का निर्माण कानून द्वारा होता है और इसे स्वतंत्र वैधानिक व्यक्तिगत प्राप्त होता है। कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ एक सामान्य व्यक्ति की भाँति कम्पनी स्वयं के नाम से व्यापार, व्यवहार कर सकती है, वाद चला सकती है, वाद स्वीकार कर सकती है, बाहरी व्यक्तियों से अनुबन्ध कर सकती है, कर्मचारी नियुक्त कर सकती है इसलिए इसे कृत्रिम व्यक्ति कहा जाता है।
3. पृथक वैधानिक आस्तित्व
कम्पनी का अस्तित्व वैधानिक होता है और इसके स्वामी, अंशधारियों से, इसका अस्तित्व पृथक होता है। अंशधारियों से इसका अस्तित्व इतना पृथक होता है कि अंशधारी कम्पनी पर और कम्पनी अपने अंशधारियों पर मुकद्दमा चला सकती है।
4. सीमित दायित्व
इसके अंशधारियों का दायित्व उसके द्वारा लिये गये अंशों के अंकित मूल्य तक ही सीमित रहता है। कम्पनी के दायित्व के लिए, अंशधारी निजी तौर पर उत्तरदायी नही होते और व्यक्तिगत सम्पत्ति का प्रयोग कम्पनी के दायित्वों के लिय नही किया जा सकता।
5. शाश्वत अस्तित्व
पृथक वैयक्तिक अस्तित्व होने के फलस्वरूप, कम्पनी का अस्तित्व शाश्वत रहता है। क्योंकि अंशधारियों के मृत्यु, उनेक दिवालिया या पागल या अयोग्य होने का कम्पनी के अस्तित्व पर कोई प्रभाव नही पड़ता। अंशधारी के द्वारा अपने अंशों के हस्तांतरण और इस प्रकार इसके स्वामित्व मे परिवर्तन होते रहने का भी इसके अस्तित्व पर कोई भी प्रभाव नही पड़ता।
6. सामान्य उद्देश्य
कम्पनी की स्थापना का सामान्य एवं वैधानिक उद्देश्य होता है। सामान्यतया कम्पनी लाभ अर्जन के लिए स्थापित एक संघ है। कुछ कम्पनियाँ लोकहित की दृष्टि से भी स्थापित की जाती है।
7. सम्पत्ति पर स्वामित्व
कम्पनी की सम्पत्ति पर स्वामित्व कम्पनी का होता है न कि उसके अंशधारियों का पृथक वैधानिक आस्तित्व होने के कारण ही यह संभव हो पाता है। अंशों का हस्तांतरण करते समय, कोई भी अंशधारी कम्पनी की सम्पत्ति विभाजित इसीलिए नही करा पाता।
8. कार्युक्षेत्र की सीमाएं
कम्पनी अपने सीमानियम स्पष्ट उद्देश्य वाक्य के अन्तर्गत ही कार्य कर सकती है। उद्देश्य वाक्य मे स्पष्ट कार्यक्षेत्र और अधिकार सीमा से बाहर कोई कार्य नही किया जा सकता। कम्पनी के कार्यक्षेत्र की सीमाएं-कम्पनी अधिनियम, सीमानियम और अन्तर्नियमों द्वारा शासित होती है।
9. अभियोग का अधिकार
एक मूर्त व्यक्ति की तरह कम्पनी को अपने अधिकारों के लिए अन्य व्यक्तियों और संस्थाओं पर वाद चलाने का अधिकार होता है। कम्पनी कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ अपने अधिकार सम्पत्ति आदि की रक्षा प्राप्त करने के लिए न्यायालय की शरण मे जा सकती है। इसी प्रकार दूसरे व्यक्ति भी कम्पनी पर वाद चला सकते है।
10. अनिवार्य अंकेक्षण
कम्पनी के खातों का अंकेक्षण कराना कानूनी तौर पर अनिवार्य होता है, जबकि साझेदारी तथा एकाकी व्यापार के लिये यह ऐच्छिक है।
फोरम बना आयोग: 20 लाख की जगह 1 करोड़ के मामलों की होगी सुनवाई
जिला उपभोक्ता फोरम को आयोग का दर्जा मिल गया है। केंद्र सरकार के 15 जुलाई को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के राजपत्र में प्रकाशित होने के बाद 20 जुलाई से इसे देशभर में कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ लागू कर दिया गया। इसके चलते दुर्ग जिला उपभोक्ता फोरम को उपभोक्ता आयोग दर्जा मिला है। जिला फोरम को 20 लाख रुपए तक के विवादों की सुनवाई का अधिकार था। बढ़ोतरी करते हुए एक करोड़ रुपए कर दिया गया है। किसी दूसरे राज्य या शहर से जुड़े प्रकरणों को भी आयोग में दर्ज हो सकेंगे। फोरम सदस्य राजेंद्र पाध्ये ने बताया कि वर्तमान में ऑनलाइन शॉपिंग, ई पेमेंट, ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग, ई-बुकिंग सहित उपभोक्ता सुविधा से जुड़ी अनेक नई तकनीक आ गई है। कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ इसकी वजह से नए और अधिक प्रभावी उपभोक्ता कानून की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। नए कानून में वस्तु के विक्रेता की परिभाषा को विस्तारित किया गया है जिस कारण अब ई-कॉमर्स (ऑनलाइन शॉपिंग) सुविधा देने वाले भी विक्रेता की श्रेणी में आएंगे। इसके अलावा पहले फोरम का फैसला नहीं मानने पर पहले न्यूनतम जुर्माना 2 और अधिकतम 10 हजार देने होता था। लेकिन अब 25 से एक लाख रुपए तक फाइन लगाया जाएगा। वर्तमान में लॉक डाउन की वजह से फोरम में 3 अगस्त तक के लिए सुनवाई संबंधी गतिविधियां बंद है। फिलहाल शिकायती आवेदन स्वीकार किए जा रहे है। 4 अगस्त से जिला फोरम आयोग की तरह संचालित होगा। इसे लेकर तैयारियां शुरू हो गई है।
Commerce (वाणिज्य) UP Board IX
वाणिज्य (Commerce) Book का संकरण माध्यमिक शिक्षा परिषद, उत्तर प्रदेश, प्रयागराज के नवीनतम पाठ्यक्रमानुसार (कक्षा 9) के छात्र-छात्राओं के लिए है। प्रश्नों के निचे उत्तर संकेत विस्तार लस देकर इसे और भी सरल बनाने का प्रयास किया गया है। पुस्तक लिखते समय कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ क्रियात्मक प्रश्नों को आसान से कठिन की ओर एवं उदाहरणों के आधार पर प्रश्नों को उसी क्रम में देकर ऐसा प्रयास किया गया है। पुस्तक को रूप देते समय विषय-सामग्री का प्रस्तुतिकरण अत्यन्त कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ सरल एवं रोचक भाषा-शैली में किया गया है। पुस्तक के इस संस्करण में पर्याप्त मात्रा में वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को यथा-स्थान भी दिया गया है। पुस्तक में दी गई भाषा अधिक सरल एवं आनंददायक है।
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ई-कॉमर्स क्या होता है
आज के समय में इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन व्यवसाय करना तथा ख़रीदारी करना बहुत पसंद किया जा रहा है, अब हमे मोबाइल, फर्नीचर, कपडे एवं इलेक्ट्रानिक का सामान आदि खरीदने के लिए बाजार नहीं जाना पड़ता है घर बैठे ही इंटरनेट ऑनलाइन शॉपिंग के द्वारा एक क्लिक से आप घर पर ही सामान मंगवा सकते है | ऑनलाइन शॉपिंग का व्यवसाय आज के समय में बहुत लोकप्रिय बन चुका है |
इंटरनेट के माध्यम से खरीदारी को ही ई-कॉमर्स कहते है Amazon, Flip-kart, shopcluse आदि वेबसाइट ई-कॉमर्स की ही साइट है | इन वेबसाइट के द्वारा ऑनलाइन व्यवसाय किया जा रहा है बहुत से लोग ऑनलाइन शॉपिंग करते है लेकिन उन्हें ई-कॉमर्स क्या है, इसका क्या मतलब होता है यह कितने प्रकार का है इस सम्बन्ध में पूरी जानकारी नहीं होती है, इसलिए इस पेज पर आपको “ई-कॉमर्स क्या होता है? लाभ और विशेषताओं” के विषय में सम्पूर्ण जानकारी दी जा रही है |
ई-कॉमर्स (E-COMMERCE) क्या है?
Table of Contents
ई-कॉमर्स को इंटरनेट या इलेक्ट्रानिक कॉमर्स भी कहते है, इंटरनेट के माध्यम से अपने व्यवसाय को संचालित करने को ई-कॉमर्स कहा जाता है | सामान और सेवाएं खरीदने, बेचने तथा ग्राहकों के साथ व्यवसाय करना एवं भागीदारी देना भी शामिल है साथ ही पैसो के स्थानांतरण तथा डाटा कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ के साँझा करने की भी प्रक्रिया है, जिसमे इलेक्ट्रानिक रूप में दो या दो से अधिक सहयोगियों के बीच डाटा अथवा धन स्थानांतरित होता रहता है |
ई-कॉमर्स के द्वारा व्यापार करने में समय और दूरी रूकावट नहीं बनते है, ई-कॉमर्स को आप ऑनलाइन शॉपिंग भी कह सकते है | टीवी रिचार्ज, नेट बैंकिंग, पेटीएम आदि मोबाइल एप्लीकेशन के द्वारा भी इलेक्ट्रानिक व्यवसाय किया जा रहा है | मिंत्रा, स्नेपडील, शॉपक्लूज, बिगबास्केट, अमेजन, फ्लिपकार्ट, अलिबाबा आदि ई-कॉमर्स व्यापारियों की वेबसाइट है |
ई-कॉमर्स के प्रकार
व्यवसाय से व्यवसाय (Business to Business E-commerce)
दो व्यवसायिक कंपनियों के बीच आपसी लेंन-देंन से सम्बंधित है जिसमे कोई कंपनी अपना खुद का उत्पाद ना बना कर दूसरी कंपनी से खरीद कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ कर बेचता है उसे व्यवसाय से व्यवसाय ई-कॉमर्स या Business to Business E-commerce भी कहते है |
व्यापार से उपभोक्ता (Business to Consumer E-commerce)
कंपनी अपने बनाये उत्पाद एवं सेवाएं सीधे उपभोक्ता को वेबसाइट के माध्यम से बेचता है, जिसमे उपभोक्ता उत्पाद के विषय में जानकारी लेकर उत्पाद का आर्डर करके घर में सामान प्राप्त करता है इस इलेक्ट्रानिक लेंन-देंन को व्यापार से उपभोक्ता ई-कॉमर्स या Business to Consumer E-commerce भी कहते है, जैसे Flipkart, Amazon आदि |
3.उपभोक्ता से उपभोक्ता (Consumer to Consumer E-commerce )
दो उपभोक्ताओं के बीच सेवाओं और सुविधाएं का इलेक्ट्रानिक लेंन-देंन किसी तीसरे पक्ष के माध्यम से किया जाता है, जिसमे एक उपभोक्ता सामान बेचता है और दूसरा खरीदता है जैसे olx ,Quicker, eBay आदि, इसे उपभोक्ता से उपभोक्ता ई-कॉमर्स या Consumer to Consumer E-commerce भी कहते है |
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018 ने दिए गए वर्षों में से किस उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की जगह ले ली है?
Key Points
- इसे दिसंबर 2018 में लोकसभा में पारित कॉमर्स का अर्थ एंव परिभाषाएँ किया गया था।
- ई-कॉमर्स की परिभाषा जैसी नई परिभाषाओं को नए अधिनियम में जोड़ा गया है।
- उपभोक्ताओं की परिभाषा में अब फ्लिपकार्ट, एयरबीएनबी जैसे ऑनलाइन प्लेटफार्मों से सामान और सेवाएँ खरीदना शामिल है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2018 20 जुलाई 2019 को लागू हुआ, जो उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा, संवर्धन और प्रवर्तन के लिए गुणवत्ता को बढ़ावा देने वाले केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की स्थापना करता है।