तरीके और तकनीक

वेव सिद्धांत का गणितीय आधार

वेव सिद्धांत का गणितीय आधार

मैक्सवेल का विद्युतचुम्बकीय तरंग सिद्धांत , प्रकाश का सिद्धान्त (maxwell electromagnetic wave theory in hindi)

इन सन्दर्भ में स्कॉटलैंड के भौतिक वैज्ञानिक मैक्सवेल ने प्रयोग किये और अपने प्रयोगों के आधार पर अपना सिद्धांत 1865 में दिया जिसे मैक्सवेल का विद्युत चुम्बकीय सिद्धांत कहते है , जिसमे उन्होंने बताया कि प्रकाश की गति तरंग के रूप में होती है और इसे गति करने के लिए किसी माध्यम की (इथर) आवश्यकता नहीं होती है। प्रकाश की तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ होती है।

मैक्सवेल के इस विद्युतचुम्बकीय तरंग सिद्धान्त के आधार पर लगभग 20 साल तक संदेह रहा तथा इसे अपनाया नहीं गया था क्यूंकि मैक्सवेल ने इस सिद्धांत को गणितीय रूप में बताया था लेकिन प्रकाश से सम्बंधित घटनाओं को प्रयोग द्वारा स्पष्ट नही किया था।

बाद में जब हर्ट्ज़ अपने प्रयोग कर रहे थे तो उन्होंने पाया कि मैक्सवेल का सिद्धांत सही था , हर्ट्ज़ ने अपने प्रयोगों में पाया कि प्रकाश तरंग में तथा रेडियो तरंग में कुछ ज्यादा अंतर नहीं था , दोनों ही एक दुसरे के समान थी इसलिए प्रकाश को तरंगों के रूप में माना और अन्य कई प्रयोग किये।

कई प्रयोगों के बाद मैक्सवेल के अनुसार प्रकाश को तरंग मानकर प्रकाश की घटनाओं जैसे परावर्तन , अपवर्तन , ध्रुवण , व्यतिकरण , विवर्तन आदि घटनाओं की व्याख्या कर दी गयी।

लेकिन दूसरी तरफ प्लांक के सिद्धांत को भी नकारा नहीं जा सकता क्यूंकि इस सिद्धांत के आधार पर भी प्रकाश की घटनाओं जैसे प्रकाश विद्युत प्रभाव तथा कॉम्पटन प्रभाव आदि की व्याख्या की गयी थी।

इसके बाद मैक्सवेल के विद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धांत के आधार पर ज़ेमान प्रभाव (Zeeman effect) तथा केर प्रभाव (Kerr effect) की भी व्याख्या सफलतापूर्वक कर दी गयी अत: इस बात को भी नाकारा नही जा सकता था की प्रकाश तरंग के रूप में होती है और प्रकाश अनुप्रस्थ तरंग प्रकृति का होता है।

निष्कर्ष : प्रकाश की सभी घटनाओं को किसी एक सिद्धांत के आधार पर व्याख्या संभव नहीं है इसलिए प्रकाश को द्वेत प्रकृति का माना गया।

मैक्सवेल का विद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त (maxwell’s electromagnetic wave theory in hindi) : इस सिद्धांत के अनुसार प्रकाश तरंगे विद्युत चुम्बकीय तरंगें होती है। इन तरंगों में विद्युत और चुम्बकीय क्षेत्र दोनों साथ साथ समान कला में सरल आवर्ती रूप से परिवर्तित होते है। इन तरंगों में विद्युत क्षेत्र (E) सदिश और चुम्बकीय क्षेत्र (B) सदिश परस्पर लम्बवत होते है तथा दोनों तरंग संचरण की दिशा के भी लम्बवत होते है। इस प्रकार विद्युत चुंबकीय तरंगें अनुप्रस्थ होती है। इन तरंगों में दोनों सदिश E और B समान रूप से तरंग के अभिलाक्षणिक गुण को प्रदर्शित करते है परन्तु कुछ क्रियाओं में विद्युत क्षेत्र वेक्टर E चुंबकीय क्षेत्र सदिश (B) की तुलना में अधिक प्रभावी होता है , जैसे – फोटोग्राफिक प्लेट अथवा फिल्मों को केवल सदिश E ही प्रभावित करता है B नहीं।

इसी प्रकार देखने की क्रिया में विद्युत क्षेत्र सदिश E ही अधिक महत्वपूर्ण होता है क्योंकि E ही आँख के रेटिना को प्रभावित करता है , B नहीं। इसलिए विद्युत क्षेत्र वेक्टर को प्रकाश वेक्टर भी कहते है।

अन्तरिक्ष किरणें , गामा किरणें , x किरणें , पराबैंगनी किरणें , दृश्य प्रकाश , अवरक्त किरणें , माइक्रो तरंगें और रेडियो तरंगें सभी विद्युत चुम्बकीय तरंगे है जो आवृत्ति में एक दूसरे से भिन्न है लेकिन समान माध्यम में समान वेग से संचरित होती है।

विद्युत चुम्बकीय तरंगों का इतिहास (history of electromagnetic waves)

मैक्सवेल द्वारा विद्युत चुम्बकीय तरंगों की खोज के बाद विभिन्न वैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र में अपना योगदान देकर इसे वृहत् बनाया। योगदान की श्रृंखला निम्नलिखित प्रकार है –

(i) हर्ट्ज का प्रयोग (hertz experiment) : जर्मन वैज्ञानिक हेनरिच रुडोल्फ हर्ट्ज़ ने सन 1887 में दोलित्र आवेश द्वारा विद्युत चुम्बकीय तरंगों का उत्पन्न होना प्रयोग द्वारा प्रदर्शित किया। आज की विकसित संचार प्रणाली की आधारशिला हर्ट्ज़ का प्रयोग ही है।

इसमें S1 और S2 दो बड़ी धातु की प्लेटें है जो पीतल की छड़ों R1 और R2 से जुडी रहती है है। पीतल की छड़े दो धातु की गोलियां A 1 और A 2 से जुडी रहती है। इन गोलियों के मध्य वायु का अंतराल होता है। दोनों गोलियों का सम्बन्ध एक प्रेरण कुंडली की द्वितीयक कुण्डली से होता है ताकि उनके मध्य उच्च विभवान्तर लगाया जा सके। विद्युत चुंबकीय तरंगों के संसूचन के लिए हर्ट्ज़ ने एक संसूचक बनाया जो दो गोलों D 1 और D 2 से जुड़े तार के एक लूप के रूप में है।

कार्यविधि : प्रेरण कुंडली में अन्तरायित धारा प्रवाहित करने पर गोलों A 1 और A 2 के बिच अंतराल में उच्च वोल्टता लगती है। उच्च वोल्टता गोलों के मध्य वायु को आयनित कर देती है। गोलों के मध्य वायु के आयनीकरण के फलस्वरूप उत्पन्न इलेक्ट्रॉन और धनायन विसर्जन के लिए चालक पथ प्रदान करते है जिससे अंतराल में चिंगारी उत्पन्न होती है। ये आवेशित कण आगे पीछे दोलन करने लगते है जिससे विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न होती है। उत्पन्न विद्युत चुंबकीय तरंगों की आवृत्ति प्लेटों के मध्य धारिता और कुण्डली के प्रेरकत्व द्वारा निर्धारित की जाती है जो निम्नलिखित सूत्र से मिलती है –

परिपथ , L-C परिपथ के तुल्य है जिसमें कुंडली प्रेरकत्व प्रदान करती है और गोलीय इलेक्ट्रोड धारिता प्रदान करते है। प्रेरकत्व और धारिता दोनों के मान बहुत कम है अत: दोलनों की आवृति f बहुत अधिक है। अत: परिपथ उच्च आवृत्ति की विद्युत चुम्बकीय तरंगें उत्पन्न करता है। संसूचक ऐसी स्थिति में रखा जाता है कि दोलित आयनों द्वारा उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र संसूचक कुंडली के लम्बवत रहे। यह दोलित चुम्बकीय क्षेत्र संसूचक कुंडली के अंतराल D 1 और D 2 में दोलित्र विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है और अंतराल में चिंगारी उत्पन्न करता है। यह विद्युत चुम्बकीय तरंगों की उत्पत्ति का सीधा प्रदर्शन है।

जब संसूचक कुण्डली का अंतराल D 1 D 2 अन्तराल A 1 A 2 के लम्बवत था तो हर्ट्ज़ विद्युत चुम्बकीय तरंगों का संसूचन नहीं कर पाए। स्पष्ट है कि विद्युत चुम्बकीय तरंगें ध्रुवित होती है। इस प्रयोग द्वारा 5 m तरंग दैर्ध्य वाली विद्युत चुम्बकीय तरंगे उत्पन्न हुई।

(ii) बोस की खोज : वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस ने हर्ट्ज़ के प्रयोग के 7 वर्ष बाद कलकत्ता में कार्य करते हुए बहुत कम तरंग दैर्ध्य 5 mm से 25 mm परास तक की विद्युत चुम्बकीय तरंगों को उत्पन्न और संसूचित किया।

(iii) मारकोनी की खोज : इसी समय जी.मार्कोनी ने हर्ट्ज़ के कार्य का अनुसरण करते हुए कई किलोमीटर की दूरियों तक विद्युत् चुम्बकीय तरंगों का सफलतापूर्वक प्रयोग किया। मार्कोनी ने अंतराल का एक टर्मिनल एंटीना से और दूसरा पृथ्वी से सम्बन्धित किया। मार्कोनी द्वारा उत्पन्न विद्युत चुम्बकीय तरंगों की खोज से बेतार संचार प्रणाली के द्वार खुल गये।

पहली बार ‘सुनी’ गई ब्लैक होल की रिंगिंग

ब्रह्मांड के अध्ययन का मुख्य आधार और खगोल भौतिकी में कई खोजों की कुंजी बन चुका अल्बर्ट आइंस्टाइन का सामान्य सापेक्षता सिद्धांत अपनी खोज के सौ से ज्यादा साल पूरे होने के बावजूद सुर्खियों में रहता है। ताजा मामला यह है कि शोधकर्ताओं के मुताबिक एक घूमते हुए नवजात ब्लैक होल की रिंगिंग के अनोखे पैटर्न को ‘सुना’ गया है, जो आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के कुछ और पहलुओं की पुष्टि करता है। सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के मुताबिक ब्रह्मांड में किसी भी वस्तु की तरफ जो गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव दिखाई देता है, उसका वास्तविक कारण यह है कि हर वस्तु अपने द्रव्यमान और आकार के मुताबिक अपने इर्द-गिर्द के स्पेसटाइम की ज्यामिती को मोड़ देती है।

ब्लैक होल खगोल भौतिकी के सबसे बड़े रहस्यों में है, इसलिए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं है कि इससे जुड़ी नई खोजों ने अक्सर आइंस्टाइन के इस 103 साल पुराने सिद्धांत की या तो पुष्टि की या फिर इसे चुनौती दी। आइंस्टाइन ने यह प्रस्ताव दिया था कि ब्लैक होल से उत्पन्न होने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों का एक सटीक स्वरमान (पिच) होगा, जिससे वह एक घंटी की तरह बजेगा और इसका सीधा वास्ता ब्लैक होल के द्रव्यमान और उसके घूमने की गति से होगा। अब अमेरिका के मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (एमआइटी) के शोधकर्ताओं ने एक कंप्यूटर सिमुलेशन और गणितीय अध्ययन के जरिए कहा है कि ब्लैक होल अल्बर्ट आइंस्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के अनुरूप ही व्यवहार कर रहा है।

इस अध्ययन के निष्कर्ष इसी 12 सितंबर को प्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका ‘फिजिकल रिव्यू लेटर्स’ में प्रकाशित किए गए। यह इस विचार के पक्ष में है कि ‘ब्लैक होल केशहीन होता है’। आइंस्टाइन के सिद्धांत के अनुसार ब्लैक होल का आकार और उसका रूप केवल उसके द्रव्यमान, घूमने की गति और विद्युत आवेश पर आधारित होगा, ना कि उस पिंड की प्रकृति पर जो एक ब्लैक होल बनने के लिए गुरुत्वीय निपात के कारण सिकुड़कर ढह जाता है। यह परिणाम बाद में ‘केशहीनता प्रमेय’ (नो हेयर थ्योरम) के नाम से मशहूर हुआ। द्रव्यमान, घूमने की गति और विद्युत आवेश की यह खासियत है कि इनका अवलोकन किया जा सकता है, जबकि अन्य विशेषताओं का अवलोकन नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ये सभी ब्लैक होल में ही समा जाते हैं। वैज्ञानिक जॉन व्हीलर ने इन ‘अन्य विशेषताओं’ के लिए ‘केश’ शब्द का इस्तेमाल एक रूपक के रूप में किया था।

इस हालिया खोज के अंतर्गत वैज्ञानिकों ने एक ब्लैक होल के रिंगिंग पैटर्न की पहचान की और आइंस्टाइन के समीकरणों का उपयोग करते हुए इसके द्रव्यमान और घूर्णन की गणना की। यह गणना ब्लैक होल के द्रव्यमान और घूर्णन के पहले के मापों से मेल खाती है। आइंस्टाइन के सिद्धांत की यह भविष्यवाणी है कि एक ब्लैक होल के गुरुत्वाकर्षण तरंगों का स्वरमान और क्षय (हानि) इसके द्रव्यमान और घूर्णन की सीधी उपज होनी चाहिए। वैज्ञानिकों ने जब गुरुत्वाकर्षण तरंगों को ध्वनि तरंगों के रूप में बदला, तो उन्हें रिंगिंग सुनाई दी। इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है कि ब्लैक होल वास्तव में घंटी की तरह बजते हैं। असल में उनसे निकलने वाली तरंगें हूबहू घंटी के बजने पर निकलने वाली ध्वनि तरंगों जैसी ही होती हैं।

फिजिकल रिव्यू लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन के प्रमुख लेखक और खगोल भौतिकविद मैक्सिमिलियानो इस्सी का कहना है कि अमूमन ‘हम केवल सामान्य सापेक्षता के सही होने की उम्मीद करते हैं। यह पहली बार है जब हमने इसकी पुष्टि की है। आइंस्टाइन के सिद्धांत का प्रत्यक्ष परीक्षण करने वाला यह पहला प्रायोगिक माप है।’ इस प्रयोगिक माप को वैज्ञानिकों ने ‘लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी’ (लीगो) के जरिए अंजाम दिया है।

बहरहाल, नित हो रही ऐसी नवीनतम खोजों से हम इतना तो जरूर जान गए हैं कि दूरी, द्रव्यमान और काल तीनों ही दृष्टियों से ब्रह्माण्ड इतना अधिक रहस्यमय है कि दैनिक जीवन के अनुभवों से इसका अनुमान लगाना असंभव है। इसलिए हमें गणित और विज्ञान के नेत्रों का सहारा लेना होता है। गणित और विज्ञान की ही सहायता से हम खगोलीय अवलोकन कर रहे हैं और भविष्य में भी करते रहेंगें।

हाइजेनबर्ग का सिद्धांत को समझाइए​

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अनिश्चितता सिद्धान्त की परिभाषा (definition of heisenberg uncertainty principle in hindi) यह सिद्धांत कहता है कि किसी भी इलेक्ट्रान का एक ही समय पर सटीक स्थान तथा संवेग (momentum) निर्धारित करना असंभव है। जहाँ ∆x स्थान में अनिश्चितता है, तथा ∆p संवेग में।

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Explanation:

यह सिद्धांत कहता है कि किसी भी इलेक्ट्रान का एक ही समय पर सटीक स्थान तथा संवेग (momentum) निर्धारित करना असंभव है।

गणितीय रूप से यह सिद्धांत कुछ इस तरह लिखा जाएगा –

जहाँ ∆x स्थान में अनिश्चितता है, तथा ∆p संवेग में।

यानी यदि हमें इलेक्ट्रान का अत्यंत सटीक वेग पता है (∆v बहुत कम है) तो उसका स्थान अनिश्चित रहेगा (∆x बहुत विशाल होगा)। इसी तरह यदि हम स्थान निश्चित रूप से जानेंगे, तो वेग अनिश्चित हो जाएगा।

अनिश्चितता का कारण (Reason for uncertainty in hindi)

अनिश्चितता मुख्य रूप से कणों के दोहरे व्यवहार (ड्यूल बेहवीयर) के कारण होता है। हर वस्तु कण (पार्टिकल) तथा तरंग दोनो की तरह व्यवहार करता है। यह तथ्य क्वांटम मैकेनिक्स की नीव भी है।

क्वांटम मैकेनिक्स एक समय पर सटीक संवेग तथा स्थान का कोई अर्थ नहीं।

तरंग व्यवहार (Wave nature in hindi)

तरंग वो उपद्रव या वेव सिद्धांत का गणितीय आधार बाधाएँ है, जो विस्तार में समान रूप से फैली हुई हैं। जैसे जब हम तालाब में एक पत्थर फेंकते हैं तो कई लहरें बनती है, जो तरंग होती हैं।

चूंकि तरंग फैली हुई होती है, उसका कोई एक स्थान निश्चित नहीं किया जा सकता। उसके स्थान की कई संभावनाएँ हैं। परंतु उसकी दूसरी विशेषताएँ जैसे तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) का पता लगाया जा सकता है।

तरंग दैर्ध्य पता है, यानी हम तरंग का संवेग भी निश्चित ही जान सकते हैं।

कण व्यवहार (Particle behaviour in hindi)

कण किसी भी समय एक तय स्थान पर मिलेंगे। यानी उनका स्थान पता लगाया जा सकता है। अब कोई वस्तु यदि बहुत तेज़ जा रही हो, तब उसका संवेग ज़्यादा होता है। और यदि कोई भारी वस्तु धीरे भी जा रही वेव सिद्धांत का गणितीय आधार हो, तब भी उसका संवेग ज़्यादा ही होगा।

और ज़्यादा संवेग यानी कम तरंग दैर्ध्य। ये तरंग दैर्ध्य इतनी कम होती है कि इसका पता भी लगा पाना कठिन है। अब यदि तरंग दैर्ध्य ही न पता हो, तो उस कण का संवेग भी नहीं जाना जा सकता।

ऐसे में हम वस्तुओं के कण तथा तरंग व्यवहार दोनों को ही मिला कर देखना होगा, की स्थान तथा संवेग एक साथ जानने में क्या दिक्कतें आती हैं।

दोहरा व्यवहार (Dual Nature in hindi)

किसी भी तरंग में कण जैसा व्यवहार लाने हेतु हम दो या अधिक तरंगों को मिलाएँगे। क्योंकि हमने पाया है कि जब दो तरंगें मिलती हैं, तो कुछ जगह तरंग के शिखर जुड़कर और ऊँचे हो जाते हैं तथा कुछ जगह तरंग के शिखर निचले हिस्से के मिलकर समतल हो जाते हैं।

इस तरह यदि हम कई तरंगों को जोड़ते जाएँ, और तरंगों का पुलिंदा ( वेव पैकेट ) बनाएँ, तो उनकी लहरें कम होती जाएँगी तथा छोटे क्षेत्र में सिमटने लगेंगी। ऐसा होने से उस तरंग का निश्चित वेव सिद्धांत का गणितीय आधार स्थान ज्ञात हो सकता।

परंतु वह वेव पैकेट कई तरंगों से बना है, इसलिए उसका संवेग भी कई तरंगों पर निर्भर करेगा। इस कारण उस वेव पैकेट का संवेग अनिश्चित हो जाएगा।

और यदि संवेग जानने हेतु हम कम तरंगे लें, तो लहरें बड़ी हो जाएँगी और स्थान अनिश्चित हो जाएगा।

सिद्धांत की वैधता (Validity of the uncertainty principle)

यह सिद्धांत केवल सूक्ष्म कण जैसे अणुओं के लिए वैध है। जैसे ही भार बढ़ेगा, ( 1mg भी ), अनिश्चितता घट के इतनी कम हो जाएगी कि उसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है।

स्थान तथा संवेग एक साथ न निर्धारित कर पाना यंत्रों की, तकनीक की या देखने वाले की त्रुटि नहीं है। क्वांटम मैकेनिक्स द्वारा यह तय की ऐसा कर पाना असंभव है। यह वस्तुओं के दोहरे व्यवहार का अनिवार्य परिणाम है।

इस कारण केवल हमारे नापने की क्षमताओं पर ही नहीं, परंतु वस्तु के गुणों पर भी प्राकृतिक रूप से प्रतिबंध लग जाता है।

CSIR NET MATHEMATICAL SCIENCES Syllabus और परीछा पैटर्न

दोस्तो जैसा कि आप सभी जानते हैं कि आजकल सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में , SSC KARNATAKA KERALA REGIONCSIR NET MATHEMATICAL SCIENCES की यह पोस्ट के बारे में हम आपको बताऐंगे !

इस पोस्ट में हम आपको CSIR NET MATHEMATICAL SCIENCES Syllabus के बारे में जानकारी देंगे ! ,अगर आपको इसकी पीडीऍफ़ चाहिये जरुर बताये तो आप हमारी बेबसाइट को रेगुलर बिजिट करते रहिये |

CSIR NET MATHEMATICAL SCIENCES Syllabus

CSIR UGC NET के बारे में विस्तार से जानकारी गणितीय विज्ञान रिक्तियों की भर्ती के लिए अधिसूचना प्रकाशित की है। वे उम्मीदवार जो निम्नलिखित रिक्ति के इच्छुक हैं और सभी पात्रता मानदंड पूरा कर चुके हैं वे अधिसूचना और ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। इस पृष्ठ में हम नवीनतम अद्यतन परीक्षा पैटर्न और परीक्षा तिथि के साथ इस भर्ती का पूरा सिलेबस प्रदान करते हैं।

CSIR NET सिलेबस गणितीय विज्ञान:

विश्लेषण: प्राथमिक सेट सिद्धांत, परिमित, गणनीय और बेशुमार सेट, एक पूर्ण आदेशित क्षेत्र के रूप में वास्तविक संख्या प्रणाली, आर्किमिडीयन संपत्ति, सर्वोच्च, अनंत। अनुक्रम और श्रृंखला, अभिसरण, लिमसअप, लिमिनाफ। बोलजानो वीयरस्ट्रैस प्रमेय, हेन बोरेल प्रमेय। निरंतरता, भिन्नता, माध्य मूल्य प्रमेय, अनुक्रम और श्रृंखला। कई चर, मीट्रिक रिक्त स्थान, कॉम्पैक्टनेस, कनेक्टिविटी के कार्य। सामान्य रूप से रैखिक रिक्त स्थान।

रैखिक बीजगणित: वेक्टर रिक्त स्थान, रैखिक परिवर्तनों के बीजगणित। मैट्रिज के बीजगणित, मैट्रिसेस के निर्धारक, रेखीय समीकरण। आइगेनवेल्स और आइगेनवेक्टर्स, केली-हैमिल्टन प्रमेय। रैखिक परिवर्तनों का मैट्रिक्स प्रतिनिधित्व। आधार, विहित रूपों, विकर्ण रूपों, त्रिकोणीय रूपों, जॉर्डन रूपों का परिवर्तन। रचनात्मक रूप, द्विघात रूपों का घटाना, और वर्गीकरण। जटिल विश्लेषण: जटिल संख्याओं का बीजगणित, जटिल विमान, बहुपद, विद्युत श्रृंखला, पारभासी कार्य जैसे कि घातांक, त्रिकोणमितीय और अतिशयोक्तिपूर्ण कार्य। विश्लेषणात्मक कार्य, कॉची-रीमैन समीकरण। समोच्च अभिन्न, कॉची प्रमेय, कॉची अभिन्न सूत्र, लिउविले प्रमेय, अधिकतम मापांक सिद्धांत, श्वार्ज़ लेम्मा, ओपन मैपिंग प्रमेय। टेलर श्रृंखला, लॉरेंट श्रृंखला, अवशेषों की गणना। अनुरूप मानचित्रण, मोबियस परिवर्तन।

बीजगणित: क्रमपरिवर्तन, संयोजन, अंकगणित की मौलिक प्रमेय, Z में विभाजन, अनुरूपण, चीनी अवशेष प्रमेय, यूलर के ,- कार्य, आदिम जड़ें, केली की प्रमेय, सिलो प्रमेय। रिंग्स, आदर्श, प्राइम और मैक्सिमम आइडियल, क्विएंट रिंग, यूनिक फैक्टराइजेशन डोमेन, पॉलीनोमियल रिंग और इरेड्यूसबिलिटी मापदंड। फ़ील्ड्स, परिमित क्षेत्र, फ़ील्ड वेव सिद्धांत का गणितीय आधार एक्सटेंशन, गैलोज़ थ्योरी।

टोपोलॉजी: आधार, घने सेट, उप-स्थान और उत्पाद टोपोलॉजी, पृथक्करण स्वयंसिद्धता, संयोजकता और कॉम्पैक्टनेस।

साधारण विभेदक समीकरण (ODEs): पहले-क्रम साधारण अंतर समीकरणों के लिए प्रारंभिक मूल्य की समस्याओं के समाधान की विशिष्टता और विशिष्टता, पहले-क्रम ODEs का विलक्षण समाधान, पहले-क्रम ODEs की प्रणाली।

आंशिक विभेदक समीकरण (PDE): प्रथम क्रम PDE, प्रथम क्रम PDE के लिए कोची समस्या को हल करने के लिए लग्र और चारपिट तरीके। द्वितीय-क्रम PDE का वर्गीकरण, निरंतर गुणांक वाले उच्च-क्रम PDE का सामान्य समाधान, लाप्लास, हीट और वेव समीकरणों के लिए चरों के पृथक्करण की विधि।

संख्यात्मक विश्लेषण: बीजीय समीकरणों के संख्यात्मक समाधान, पुनरावृत्ति की विधि और न्यूटन-राफसन विधि, अभिसरण की दर,

विभिन्नताओं की गणना: एक कार्यात्मक, यूलर-लाग्रैग समीकरण का भिन्नता, विलुप्त होने के लिए आवश्यक और पर्याप्त स्थिति। साधारण और आंशिक अंतर समीकरणों में सीमा मूल्य की समस्याओं के लिए भिन्न तरीके।

रैखिक इंटीग्रल समीकरण: रेखीय अभिन्न समीकरण फ्रेडहोम और वोल्त्र्रा प्रकार के पहले और दूसरे प्रकार के, अलग-अलग गुठली के साथ समाधान। विशेषता संख्या और आइजनफैक्शन, रिज़ॉल्वेंट कर्नेल।

शास्त्रीय यांत्रिकी: सामान्य निर्देशांक, लाग्रेंज के समीकरण, हैमिल्टन के विहित समीकरण, हैमिल्टन के सिद्धांत और कम से कम कार्रवाई के सिद्धांत, कठोर निकायों के दो आयामी गति, एक धुरी के बारे में कठोर शरीर की गति के लिए यूलर वेव सिद्धांत का गणितीय आधार के गतिशील समीकरण, छोटे दोलनों का सिद्धांत। वर्णनात्मक आँकड़े, खोजपूर्ण डेटा विश्लेषण, नमूना स्थान, असतत संभावना, स्वतंत्र घटनाएँ, बेयस प्रमेय। यादृच्छिक चर और वितरण कार्य (एकतरफा और बहुभिन्नरूपी); अपेक्षा और क्षण। स्वतंत्र यादृच्छिक चर, सीमांत और सशर्त वितरण। मानक असतत और निरंतर अविभाज्य वितरण। नमूना वितरण, मानक त्रुटियां और विषम वितरण, आदेश सांख्यिकी का वितरण, और सीमा। आकलन के तरीके, अनुमानकर्ताओं के गुण, आत्मविश्वास अंतराल। परिकल्पनाओं के परीक्षण, गॉस-मार्कोव मॉडल, मापदंडों की विश्वसनीयता, सर्वश्रेष्ठ रैखिक निष्पक्ष अनुमानक, विश्वास अंतराल, रैखिक परिकल्पना के परीक्षण। विचरण और सहसंयोजक का विश्लेषण। सरल और कई रैखिक प्रतिगमन, बहुभिन्नरूपी सामान्य वितरण, द्विघात रूपों का वितरण।

भौतिकी का नोबेल पुरस्कार एमआईटी के प्रोफेसर रेनर वीस, कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर किप थोर्न और बैरी बेरिश को सम्मिलित रूप से दिया गया है.

गुप्त गुरुत्वीय तरंगें जिनके लिए मिला है भौतिकी नोबेल पुरस्कार

इस वर्ष का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार किसी दुनिया बदलने वाले आविष्कार के लिए नहीं बल्कि दुनिया और ब्रम्हांड को समझने में मदद करने वाली एक खोज को मिला है और ये खोज है गुरुत्वीय तरंगें.

हांलाकि सन 1916 में ही अल्बर्ट आइंस्टाइन ने सापेक्षता के सिद्धांत के आधार पर गुरुत्वीय तरंगों के होने का अनुमान लगाया था, लेकिन जब 100 साल बाद सन 2016 में ब्रह्मांड में गुरुत्वीय तरंगों के अस्तित्व का प्रत्यक्ष प्रमाण मिला तो इसे शताब्दी की सबसे बड़ी खोज माना गया और कहा गया कि इससे ब्रह्मांड के कई अनसुलझे रहस्यों को समझने में मदद मिलेगी. ब्लैक होल की गुत्थी सुलझने से ब्रह्मांड को हम और बेहतर तरीके से समझ पाएंगे. दरअसल ब्लैक होल से प्रकाश तो बाहर नहीं आ सकता जबकी गुरुत्वीय तरंगें बाहर आ जाती हैं इसलिए गुरुत्वीय तरंगों की खोज इतनी उत्साहित करने वाली है.

ब्लैक होल (Credit: NASA/CXC/M. Weiss)

भौतिकी का नोबेल पुरस्कार एमआईटी के प्रोफेसर रेनर वीस, कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर किप थोर्न और बैरी बेरिश को सम्मलित रूप से दिया गया है. इन तीनों वैज्ञानिकों को ये पुरस्कार गुरुत्वीय तरंगों की पहचान करने वाले एलआईजीओ यानी लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी डिटेक्टर के निर्माण में निर्णायक योगदान के लिए और गुरुत्वाकर्षण तरंगों के अवलोकन में मदद करने के लिए दिया गया है. ये तीनों ही वैज्ञानिक खगोलशास्त्र के क्षेत्र में दशकों से बड़ा नाम रहे हैं.

तीनों वैज्ञानिकों का फोटो कोलाज (Credit – twitter , the Nobel prize )

तीनों वैज्ञानिकों के बारे में कुछ बातें आपको जरूर जाननी चाहिए. 85 वर्षीय एमआईटी के रिटायर प्रोफेसर रेनर वीस का जन्म जर्मनी में हुआ था. उनके पिता एक यहूदी थे और जर्मनी में कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य थे. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान नाजियों द्वारा यहूदियों पर किये गए बर्बर अत्याचार के दौरान उनके परिवार को अमेरिका में शरण लेनी पड़ी. युवा रेनर का बचपन न्यूयॉर्क में गुजरा, उन्होंने एमआआईटी से ही पीएचडी की और सन 1964 में वो एमआईटी में ही पढ़ाने लगे.

पुरस्कार के दूसरे हक़दार बने किप थॉर्न 1940 में अमेरिका में जन्में. उनके पिता अर्थशास्त्री थे और एलडीएस चर्च के समर्पित कार्यकर्ता थे. घर में काफी धार्मिक माहौल था लेकिन किप ने खुद को धार्मिक विचारों से अलग कर लिया और नास्तिक वेव सिद्धांत का गणितीय आधार बन गए. किप थोर्न कहते हैं, “मेरे बहुत से सहयोगी वैज्ञानिक हैं जो बेहद धार्मिक हैं और भगवान में विश्वास करते हैं लेकिन विज्ञान और धर्म के बीच कोई बुनियादी तालमेल नहीं है और मुझे भगवान पर विश्वास नहीं करना है.”

उन्होंने 1965 में प्रिन्स्टन यूनिवर्सिटी से पीएचडी की और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के सबसे कम उम्र के प्रोफेसर बने. वो मशहूर साइंस फिक्शन फिल्म ‘इंटरस्टेलर’ के वैज्ञानिक सलाहकार और एग्जीक्यूटिव-प्रोडूसर भी थे. इंटरस्टेलर फिल्म की थ्योरेटिकल फिजिक्स एक्यूरेसी के पीछे किप थोर्न का ही दिमाग है.

तीसरे विजेता बैरी बेरिश ने 1962 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया से हाई एनर्जी फिजिक्स में अपनी पीएचडी की और उसके बाद कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में बतौर रिसर्चर जुड़े जहां बाद में वो प्रोफ़ेसर बन गए. 81 वर्ष के बेरिश का जन्म तो अमेरिका में ही हुआ था और इनके पिता भी अमेरिका में एक यहूदी शरणार्थी थे जो पोलैंड से अमेरिका पहुंचे थे. बेरिश पिछले पच्चीस सालों से एलआईजीओ की परियोजना पर काम कर रहे हैं. ये सीईआरएन की लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर परियोजना में भी सीनियर साइंटिस्ट रह चुके हैं.

एलआईजीओ के निर्माण में बुनियादी मदद प्रोफेसर रॉन ड्रेवर ने भी की थी जिनकी इसी साल मौत हो गई. पुरस्कार की कुल राशि 90 लाख स्वीडिश क्रोन (करीब 7.20 करोड़ रुपये) में से आधी राशि जर्मनी में पैदा हुए रेनर वीस को मिलेगी जबकि आधा इनाम थोर्न और बेरिश साझा करेंगे.

क्या आप सदी की सबसे बड़ी खोज और दुनिया भर के वैज्ञानिकों को चकित कर देने वाली इन गुरुत्वीय तरंगों के बारे में जानना नहीं चाहेंगे?

लेकिन इससे पहले की आप गुरुत्वीय तरंगों को समझें आपको ब्रह्मांड की संरचना को समझना होगा.

आइंस्टाइन स्पेस टाइम शीट ( Credit: ESA–C.Carreau)

आइंस्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत और गणितीय सिद्धांतों की सर्वमान्य अवधारणा के अनुसार ब्रम्हांड को स्पेस और टाइम की बहुत विशाल रबर की शीट (चादर) की तरह माना जाता है जिस पर तमाम ग्रह-नक्षत्र, तारे और आकाशगंगाएं अपने-अपने द्रव्यमानों के साथ व्यवस्थित हैं और जहां-जहां ये ग्रह-नक्षत्र, तारे अपने द्रव्यमान के साथ शीट पर स्थित होते हैं वहां-वहां वो शीट दबकर वक्राकार हो जाती है. तो जिस चीज का द्रव्यमान जितना ज्यादा होगा वो अपनी जगह की उस रबर शीट यानी स्पेस को उतना वक्राकार बना देगा.

क्या है ग्रेविटेशनल वेव ?

अब आपने नदी में नाव को चलते तो देखा ही होगा? दरअसल जब नाव तेज गति से नदी में चलती है तो अपने पीछे लहरें पैदा करते हुए चलती है. वैसे ही जब कोई पिंड तेज त्वरण के साथ ब्रह्मांड में चलता है तो वो उस स्पेस टाइम की शीट पर लहरें पैदा कर देता है, इन लहरों को ही ग्रेविटेशनल वेव कहा जाता है.

ग्रेविटेशनल वेव ( Credit – Twitter , the Nobel prize )

भौतिकी के नियमों के अनुसार हर ऐसी वस्तु जो त्वरित हो रही हो, गुरुत्वीय तरंग पैदा करती है. किन्तु कम द्रव्यमान एवं कम त्वरण वाली वस्तुओं से उत्पन्न ग्रेविटेशनल वेव का आयाम इतना कम होता है कि उन्हें इतने विशालकाय ब्रह्मांड में डिटेक्ट कर पाना भूसे के ढेर में सुई ढूंढने से भी कठिन है.

तो फिर ग्रेविटेशनल वेव को डिटेक्ट कैसे किया गया? दरअसल तारों में विस्फोट से या ब्लैक होल्स के बीच टकराव के समय पैदा होने वाली गुरुत्वीय तरंगें इतनी प्रबल होतीं हैं कि उन्हें करोड़ों प्रकाशवर्ष दूर स्थित पृथ्वी पर एम्पलीफाई करके डिटेक्ट किया जा सकता है.

इन्हीं ग्रेविटेशनल वेव्स को डिटेक्ट करने के लिए जो मशीन बनायी गयी उसे एलआईजीओ यानी लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी कहा गया. एलआईजीओ तरंग भौतिकी के इन्टरफेरेंस सिद्धांत पर काम करता है.

LIGO (एलआईजीओ)(Credit – Twitter, Nobel prize )

एलआईजीओ के निर्माण और गुरुत्वीय तरंगों की खोज के लिए दुनिया भर के करीब 1000 वैज्ञानिकों ने काम किया लेकिन सिर्फ तीन लोगों रेनर वीस,थोर्न और बैरिश को ही ये पुरस्कार इसलिए मिला क्योंकि इन तीनो लोगों ने एलआईजीओ की निर्माण के आधारभूत सिद्धांत दिए, अगर ये तीनों न होते तो शायद एलआईजीओ भी न होता. यह भारत के लिए भी गर्व करने की बात है, क्योंकि इससे जुड़े डिस्कवरी पेपर में नौ भारतीय संस्थानों के 39 भारतीय लेखकों/वैज्ञानिकों के नामों का भी उल्लेख किया गया है. इन नौ संस्थानों में सीएमआई चेन्नई, आईसीटीएस-टीआईएफआर बेंगलुरु, आईआईएसईआर-कोलकाता, आईआईएसईआर-त्रिवेंद्रम, आईआईटी गांधीनगर, आईपीआर गांधीनगर, आईयूसीएए पुणे, आरआरसीएटी इंदौर और टीआईएफआर मुंबई शामिल हैं. इन 39 भारतीय वैज्ञानिकों को इस खोज पत्र के सह-लेखक का भी दर्जा मिला हैं.

इसके आलावा एलआईजीओ की ही तरह भारत में भी एक ऑब्जर्वेटरी के निर्माण का कार्य प्रगति पर है जो साल 2024 से अमरीका की ऑब्जर्वेटरीज के साथ मिल कर कार्य करेगी.

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